Book Title: Yuga Pradhan Jinachandrasuri
Author(s): Durlabhkumar Gandhi
Publisher: Mahavirswami Jain Derasar Paydhuni

View full book text
Previous | Next

Page 424
________________ ૩૧૧ યુગપ્રધાન જિનચંદ્રસૂરિ श्रीमत्सुमतिकल्लोल रचित जिनचंदसूरि-गीत सारद पय पणमी करी, गाइसुं श्रीजिणचंद । भावभगति भोलीम करी, मनि आणि रे, २ अधिकउ आणंद कि॥१॥ वंदउ रे गछराया गच्छराया रे, २ श्रीजिणचंदसूरि कि । आंकडी। संवत सोल सडतालीसइ (१६४७), गुरु विहरइ गुजराति । अकवर गुरुनागुण सुणी, गुरुदरसण रे,२ चाहत दिनराति कि ॥२ अकवर कहइ कर्मचंद भणी, कहां तुम्हचे गुरु होइ ?। मंत्रि कहइ साहिव! सुणउ, गुजरातइं रे,२ विचरइ अव सोइ कि॥३ दे फरमाण वोलावीया, श्रीजिणचंद मुर्णिद। वात सुणी गुरु पांगुर्यो, साथइ भला रे, २ मुनिवरना बंद कि ॥४॥ श्रीसीरोही आवीया, तिहां राजा सुरतान । गुरुनइ लाभ दिया घणा, पूनिम दिन रे, २ जीव अभयदान कि॥५॥ गुरु जालउरि पधारीया, तिहां किणी रह्या चउमासि । श्रीजीनइ वचनइ करी, पूरइ भवियण रे, २ मन केरी आसि कि ॥६॥ तिहाथी पारणइ पांगुर्या, गुरु करइ साधुविहार । अबूझ जीव प्रतिवूझवइ, कलिजुगमइ रे, २ गोतम अवतार कि ॥७॥ फागुण सुदि वारसि दिनइ, सुभ योगई सुचंग। श्रीलाहोरि पधारिया, भवियण जण रे, २ हूया उछरंग कि ॥ ८॥ तिणही दिनि अकवर भणी; सहि गुरु मिलिवा जाइ। दूरथकी देखी करी, अकवरजी रे,२ जसु सन्मुख आइ कि ॥९॥ गुरु दसणं देखी करी, करइ निज मुखि गुणगान। . तेह सुणी सवि ऊंबरा, मनमोहे रे, २ हूया हयरान कि ॥१०॥ गुरुनइ हुकुम दिया इसा, नित नित तुम्ह इहां आउ। ' धरमकी वात काउ.मुझे, इतनउ गुरु.!.रे, २ करउ उ (सु) पसाउ कि

Loading...

Page Navigation
1 ... 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444