Book Title: Yuga Pradhan Jinachandrasuri
Author(s): Durlabhkumar Gandhi
Publisher: Mahavirswami Jain Derasar Paydhuni

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Page 428
________________ ૩૧૫ યુગપ્રધાન જિનચંદ્રસૂરિ . चतुर्थ दादा युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरिचित स्तवनादि कृति समुच्चयः । १ श्रीशांतिनाथ हिंडोलणा गीत (राग सारंग मल्हार) श्रीभरत दखिणमइ, मनोहर नयर वर विस्तार । कुरुदेश हथिणाउर अनोपम, इंद्रपुर अवतार ॥ तिहां विश्वसेन नरिंद पालइ, राज राणिम सार। तसु घरणी अचिरादे दीपइ, अपछरनइ अणिहार ॥१॥ हिंडोलणइ माइ ! झूलता, संति कुमार, मुझ मन हरख अपार । (आंकणी) तसु ऊअरि अणुत्तरथी चवी, प्रभु अवतरे अरिहंत । वदि भाद्रवानी सातमई, वलि जेठ वदि जगत ॥ अधरयणि तेरसि तणी,जनम्यउ वरतीयउ सुभसंति। तिणकाज संतिकुमार दीघउ, नाम भलऊ बुधवंत ॥२॥ हिंडोलणइ०। कमनीय कंचन कमल कोमल, सदल सुंदर अंग। वालपणइ अतिरूप निरखी, सुरवधू मनरंग ॥" मणिकनक मंडित पालणइ, हीडोलती हइ. चंग । , काइ अपछरा आसीस आपइ, जगि तुझ सुजस अभंग ॥३॥ हिंडोलणइ०। घर अंगणइ प्रभु ठवति पगला, घुघरा घमकंति । गजराज राजमराल मंथर, गतिसुं गुणवंति ॥ .. धरि गोद अंणिमिसनयणि वलिवलि,मातजी निरखंति। चिरि जीवज्यो तुम्हे नान्हडा, तिहां अपछरा एम कहति ॥२॥ हिंडोलणइ०।

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