Book Title: Yuga Pradhan Jinachandrasuri
Author(s): Durlabhkumar Gandhi
Publisher: Mahavirswami Jain Derasar Paydhuni

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Page 416
________________ परिशिष्ट (७) ( श्रीमान साधियोर रयित-) અર્થદતીર્થ ત્યપરિપાટી સ્તવન (સંવત ૧૯૪૧ જિનચંદ્રસૂરિ યાત્રીસંઘસહ) दहा-तीर्थकर वीसमड, पासजिणेसर देव । चरण कमल तमु अणुसरी, गुण जंपिसुं संखेव ॥१॥ जालउरा संघ चालीयउ, अर्बुद भेटण काज । भवियण जन सवि हरखीया, जिम केकी धनगाज ॥२॥ जुगप्रधान गुरु सुरतरु, श्रीजिणचंद मुर्णिद । जात्रा करण गुरु संचरइ, साथई श्रावक वृंद ॥ ३॥ चउपद-रिसहनाह मरुदेवीनंद, सेवन ऊ(वा)ननइ (?) सुरतरुकंद । अगर कपूर कस्तूरी करी, पूजिउ आदिजिन ऊलट धरी ॥४॥ सोलम जिन सोहग कंदलउ, पूनिम ससि दीसइ भलउ । शांति करण श्रीशांतिजिणंद, वीजइ भुवनि पणमुंआणंद ॥५॥ नेमिनाह जिण यावीसमउ, तीजइ जि(ण)हर उलट नमउ । पुरिसादाणी पासजिणंद, जलु दरिसण मनि परमाणंद ॥६॥ महापीर त्रिभुवन आधार, चरच्या चरण कमल नुहकार । तुरनर किंनर लेवइ पाय, बंद्या जिणवर पंचे भाय! ॥ ७ ॥ श्रीजिनकुशलसरि नामि, सीश बंछित मनना काम । पद पंकज प्रणनी मनरंगि, पासज नमि चाल्या मनरंगि ॥८॥ -हिष पहिराउरे सार सुधि सुहारियउ, दुख दुरगति रे दालिद दरई वारीयउ। रटिसरे गामह जिनवर भटीय, गोहिली रेजिनवंदी व मटीपइ । भेटीया रिपर विरद संन्ट जानु रिसादुर टला, गराइजिनचंदर तह नाम विशाखा पल्टा

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