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३४ / साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
यशोविजयजी की साहित्य-कृतियों का सामान्य परिचय
यशोविजयजी द्वारा रचित सम्पूर्ण साहित्य तो उपलब्ध नहीं है, फिर भी जितना उपलब्ध है, उससे उनकी बहुमुखी प्रतिभा, तलस्पर्शी ज्ञान और गहन मौलिक चिन्तन का दिग्दर्शन होता हैं।
यशोविजयजी की रचनाओं को मुख्यतः तीन भागों में बाँटा जा सकता है । (१) स्वरचित संस्कृत तथा प्राकृत ग्रंथ
(37) स्वोपज्ञ टीकासहित (ब) पूर्वाचार्यों की कृतियों पर टीकाएं गुर्जर भाषा में रचनाएँ
१.
स्वरचित संस्कृत तथा प्राकृत ग्रंथ
(अ) स्वोपज्ञ टीकासहित
(१)
आध्यात्मिकमत परीक्षा -
यशोविजयजी ने मूलग्रंथ प्राकृत भाषा में १८४ गाथा का लिखा है। उस पर चार हजार श्लोकों में टीका की रचना की । इस ग्रंथ और इसकी टीका में कर्त्ता ने केवली भगवंतों को कवलाहार नहीं होता है- इस दिगम्बर मान्यता का खंडन करके केवली को कवलाहार अवश्य हो सकता है- इस प्रकार की अवधारणा को तर्कयुक्त दलीलें देकर सिद्ध किया है। दिगम्बरों की दूसरी मान्यता कि तीर्थंकरों का परमौदारिक शरीर धातुरहित होता है, इसका भी इस ग्रंथ में खण्डन किया है।
स्वोपज्ञ टीकारहित
(२) गुरुतत्त्वविनिश्चय -
मूल
ग्रंथ प्राकृत
यशोविजयजी ने में ६०५ गाथा का रचा। उस पर स्वयं ने ही संस्कृत गद्य में ७००० श्लोक परिमाण में टीका लिखी। इस ग्रंथ में कर्ता ने गुरुतत्त्व के यथार्थ स्परूप का निरूपण चार उल्लास में किया है।
(३)
द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका
इस ग्रंथ में यशोविजयजी ने दान, देशनामार्गभक्ति, धर्मव्यवस्था, साधुसामग्रय द्वात्रिंशिका, वादद्वात्रिंशिका, कथा, योग सम्यग्दृष्टि, जिनमहत्त्वद्वात्रिंशिका आदि ३२ विषयों का यर्थार्थ स्वरूप समझने के लिए ३२
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