Book Title: Yashodhar Charitam
Author(s): Bhagchandra Jain
Publisher: Sanmati Research Institute of Indology

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Page 126
________________ यशोधरचरित्रम् अवांतरे ययो सार्द्धमंतःपुरजनादिभिः । रंतुं यशोमतिर्भूपः फलाढ्यं सुन्दरं वनम् ॥१३॥ नृपं वनगतं ज्ञात्वा सोऽस्मत्पुण्यप्रपेरितः।। चंडकाप्यगादस्मत्पंजरेण समं वनम् ॥१४॥ तत्र [चेतोहरोद्याने ] राजसौधं ददर्श सः। तुंगं सप्ततलं रम्यं शिरोरत्नप्रभान्वितम् ॥१५॥ तथासन्नं सितं दृष्यमद्राक्षीत्तलरक्षकः । आवांतत्र निधायाभूद्वनदर्शनलोलुपः ॥१६॥ एकाग्रध्यानसंलीनमेकमुक्त्यध्वगामिनम्। एकं स्वात्मसुखे तृप्तं धीरमेकाकिनं वरम् ॥१७॥ द्वाशापाशातिगं रागद्वेषद्वयविवर्जितम्। कर्मात्मनोद्धिविधाकर्तुमुद्यतं द्वितपोन्वितम् ॥१८॥ त्रिदंडारिं त्रिशल्यघ्नं विज्ञानं गुप्तिसंयुतम्। न्यज्ञानगर्वसंत्यक्तं रलत्रितयभूषितम् ॥१६॥ चतुराधनाधारं चतुर्गतिनिवारकम् । चतुःकषायशत्रुघ्नं चतुर्धात्वघघातकम् ॥२०॥ , पंचमगतिसंसक्तं पंचाचारपरायणम् । पंचसमितिसंयुक्तं दृढपंचमहाव्रतम् ॥२१॥ षड्द्रव्यज्ञायकं पूज्यं षड्जोवातिदयापरम् । षडन्नायतनघ्नं हि षडावश्यकतत्परम् ॥२२॥ सप्ततत्त्वप्रवीणं सत्सप्तद्धिपरिभूषितम्। सत्सप्तमगुणस्थाने स्थितं सप्तभयातिगम् ॥२३॥ मदाष्टहस्तिसिंह ह्यष्टमी भूगमोद्यतम् । अष्टकर्मारिहंतारं सिद्धाष्टगुणकांक्षिणम् ॥२४॥ १. क.ख. ग. घ. मनोहरोद्याने

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