Book Title: Yantrapurvak Karmadi Vichar
Author(s): Jain Mahila Mandal
Publisher: Jain Mahila Mandal

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Page 4
________________ प्रस्तावना. आ अमूल्य ग्रन्थनी उपयोगीता विषे भाविको माटे बहु प्रतिती कराववा आवश्यकता जणाती नथी. ग्रन्थ मांहेनुं वस्तुज स्वयं पोतानी सिद्धता प्रतिपादन करे छे. तो पण थोडं स्पष्टिकरण अनावश्यक नहि गणाय. मुख्यत्वे करीने आंतर विषयनी स्पष्टतार्थे भाषा रुपोनो एक विभाग अने बीजो यंत्रोना रुपमा आंकडाथी दर्शावेल बीजो विभाग एम बे भिन्न देखाता छतां मूळ स्वरुपे एक एवा विस्तारमा ग्रन्थनी रचना करवामां आवी छे, कर्मग्रन्थना अभ्यासीओ माटे आ पुस्तक एक आशिर्वाद समान छे. अने षद्कर्मग्रन्थमां अलभ्य एवं केटलुं एक पूर्व पुरुषोना छुटक पत्रोमांथी उध्धृत करी आमां तेनो समावेश करवामां आव्यो छे. ए आ ग्रन्थनी खास महत्ता छे. आ उपरांत चौद गुणठाणाना बंध हेतु अने भांगा वगेरे पंचसंग्रहमांथी उद्धरी विशेष पूर्णी करी छे. जे खास करीने आवश्यक छे. केटलुएक वस्तु सामान्य बुद्धिना मनुष्यने कर्मग्रन्थद्वारा समजावु मुश्केल पडे तेम हावाथी आ ग्रन्थमां तेनु खास स्पष्टिकरण करी आश्रव, संवर, समुद्घात, बंध हेतु, चार ध्यान, पांच भाव कुळकोटी वगेरे ६२ मार्गणाए बतावेल छे ते तथा १७ प्रकारनी प्रकृतिओनी १५ प्रकारनी प्रकृतिओ ६२ मार्गणाए उतारी छे. ते अने एबुं बीजु घणुं वस्तु कर्मग्रन्थ मांहेथी तारवq सामान्य मनुष्यने माटे मुश्केल गणाय तेथी आमां तेनी खास स्पष्टता करवामां आवी छे. कर्मग्रन्थोनी उपयोगीता तो तेना अभ्यासी श्रावक-श्राविकाओ तथा साधु-साध्वीजिओज समजि शके. परन्तु ए तो निर्विवाद छे के "ज्ञानावरणी" कर्मना क्षयार्थे आ ग्रन्थन पाठन एक प्रबळ अने प्रेरणात्मक साधन छे. आ ग्रन्थनां मननथी तेमनु दुध्यान नष्ट प्राय थइ आत्माने सकाय निर्जरा प्राप्त थाय छे. आ ग्रन्थ अभ्यासीओने "विनामूल्ये" वहेंचवानो प्रबंध करेल छे. तेथी दरेक बन्ध के भगीनी तेनो सदुपयोग करी पोतानु तथा पर श्रेय करवा पूर्ण प्रयाश करशे. अने निस्कारण ग्रन्थ प्राप्ति करी तेनो दुरुपयोग न थाय तेवी सर्वने नभ्र विनंति छे.आवा ग्रन्थोनी प्राप्ति करी तेनो सदुपयोग न करवो ते एक प्रकारनी ज्ञाननी आशा तनाज लेखाय तेथी तेनो भक्तिभावे अभ्यास करी करावी आत्मकल्याण करवू ए उत्तम छे. बाकी रहेली अध्रुवसताक ने ध्रुवसत्ताक प्रकृतिओ ६२ मार्गणाए लखवी रही गयेल ते बुकने अंते आपेल छे.

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