Book Title: Yantrapurvak Karmadi Vichar
Author(s): Jain Mahila Mandal
Publisher: Jain Mahila Mandal

Previous | Next

Page 10
________________ [4] पुण्यबंध, पापबंध, ध्रुवबंध अध्रुवबंध, परावर्तमान, अपरावर्तमान, ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र, अंतराय - सर्व जातिना प्रकृतिबंध ( ५४ थी ६९ ) बंधविच्छेद प्रकृति, बंध ओघप्रकृति, मिथ्यात्वादि १४ गुणठाणे बंधसंबंधी प्रकृतिओनी संख्या कुल १६ (६९ थी ८६) पुण्यप्रकृति, पापप्रकृति, ध्रुवोदयी, अध्रुवोदयी, क्षेत्रविपाकी भवविपाकी, जीवविपाकी, पुदगलविपाकी, ज्ञान'वरणी विगेरे आठे कर्मानी उदय प्रकृतिनी संख्या. कुल १६ ( ८७ थी १०४ ) उदयविच्छेद प्रकृति, उदय ओघप्रकृति, मिथ्यात्वादि १४ गुणठाणे उदयसंबंधी प्रकुतिओनी संख्या कुल १६. (१०५ थी १२१ ) उदीरणा ओघपकुति, मिथ्यात्वादि १४ गुणठाणे उदीरणा संबंधी मकुतिओनी संख्या कुल १५ (१२२ थी १३७) मोहनी सर्वघाती, देशघाती, अघाती बंध, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष, अजीब, कर्मना उदयना भंग ने चोवीशी, वासठ मार्गणानी भवस्थिति ( १३८ थी ४९ ) कायस्थिति, अने ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी. वेदनीय, आयु, गोत्र ने अंतराय - ए छ कर्मना भंग (१५० थी १५७ ) धृवसत्ताक,,, अघृवसत्ताक, सत्ताओघमकुति, चौदगुणठाणे सप्तागत प्रकुतिओनी संख्या (१५८ थी १७६) ७२ सत्तागत १४८ पकतिनी समजुती - धृवसत्ताक १२६ ने अघृवसत्ताक २२ प्रकतिओ ६२ मार्गणाए ७३ वासठ मार्गणाए १४ गुणस्थानक आश्री अवृत्तक घूत्रसत्ताक मकतिओतुं विवरण पृष्ठ २६८-२६९ २७०-२७३ २७४-२७६ २७७-२७९ २००-२०२ २८३-२८५ २८६-२८८ ... २८९-२९४ २९५ २९७-३०१

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 312