Book Title: Yantrapurvak Karmadi Vichar
Author(s): Jain Mahila Mandal
Publisher: Jain Mahila Mandal

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Page 14
________________ [४] सत्तामां-उपर प्रमाणे १५८ प्रकृति होय छे, कोई स्थले दश बंधन सिवाय, फक्त पांच शरीरनां पांच ज बंधन गणीने १४८ पण कहेली छे. ते मुझोए विचारी लेवं. उदयमां-पंदर बंधन, पांच संघातन, तथा वर्णादि सोल एम ३६प्रकृति बाद करतां. बाकी नी १२२प्रकृति गणवामां आवी छे. कारण के बंधन तथा संघातनने शरीर साथे मेलवी देवामां आव्या छे. अने वर्णादि वीशने बदले सामान्य रीते वर्ण, गंध, रस, - स्पर्श, एम चार भेद गणवामां आव्या छे. उदीरणामां-पण उपर प्रमाणे १२२ प्रकृति ज गणवामां आवी छे. बंधमां-उपर कहेली १२२ मांथी सम्यक्त्व मोहनीय अने मिश्रमोहनीय सिवाय १२० प्रकृति गणवामां आवी छे. सम्यक्त्व मोहनीय, अने मिश्रमोहनीय, ए बे प्रकृति बंधमां होती नथी; कारणके ते मिथ्यात्व मोहनीयना, अर्धविशुद्ध तथा शुद्ध करेलां दलीआं छे. तेथी ते बंधनमां गणाय नहीं. आ बे प्रकृति अनादि मिथ्यात्वीने उदयमां पण होती नथी. कर्मग्रन्थ बीजो (कर्मस्तव) १ गुणस्थाने बंध विचार. सामान्य बंध १२०. वर्ण १६, बंधन १५, संवातन ५, समकित मोहनी १, मिश्र मोहनी १, ए ३८ विना. १ मिथ्यात्व गुणस्थाने–११७प्रकृतिनो बंध होय छे. तीर्थकर नामकर्म १, आहारक शरीर १, आहारक अंगोपांग १, ए ३ प्रकृति विना. २ सास्वादन गुणस्थाने-१०१ प्रकृतिनो बंध. नरक त्रिक ३, जाति चतुष्क ४, स्थावर, चतुष्क ४, हुंडक १, आतप १, छेवटुं संघयण १, नपुंसक वेद १, मिथ्यात्व मोहनी १, ए १६ विना. ३ मिश्र गुणस्थाने-७४ प्रकृतिनो बंध. तिथंच त्रिक ३, स्त्यानधि त्रिक ३, दुर्भग त्रिक ३, अनंतानुबंधी ४, मध्य संस्थान ४, मध्य संहनन ४, नीच गोत्र १, उद्योतनाम कर्म १, अशुभ विहायोगति १, स्त्रीवेद १, ए २५ विना तथा २ आयुष्य (अवंधक होय तेथी) कुल २७ विना. ४ अविरवि गुणस्थाने-७७ प्रकृतिनो बंध. आयुष्य २, तथा तीर्थकर नाम कर्म १, ए त्रण प्रकृति सहित पूर्वनी ७४ प्रकृति मळी कुल ७७.

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