Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 14
________________ पाठ ७ मुक्ति का मार्ग आचार्य अमृतचंद्र (व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व) आध्यात्मिक सन्तों में कुन्दकुन्दाचार्य के बाद यदि किसी का नाम लिया जा सकता है तो वे हैं आचार्य अमृतचन्द्र । दुःख की बात है कि १०वीं शती के लगभग होनेवाले इन महान आचार्य के बारे में उनके ग्रन्थों के अलावा एक तरह से हम कुछ भी नहीं जानते । लोक-प्रशंसा से दूर रहनेवाले आचार्य अमृतचन्द्र तो अपूर्व ग्रन्थों की रचनायें करने के उपरान्त भी यही लिखते हैं वर्णै: कृतानि चित्रैः पदानि तु पदैः कृतानि वाक्यानि । वाक्यैः कृतं पवित्रं शास्त्र - मिदं न पुनरस्माभिः ।। २२६ ।। • पुरुषार्थसिद्धयुपाय तरह-तरह के वर्णों से पद बन गये, पदों से वाक्य बन गये और वाक्यों से यह पवित्र शास्त्र बन गया। मैंने कुछ भी नहीं किया है। इसी प्रकार का भाव आपने 'तत्त्वार्थसार' में भी प्रकट किया है। पण्डित आशाधरजी ने आपको 'ठक्कर' शब्द से अभिहित किया है, अतः प्रतीत होता है कि आप किसी उच्च क्षत्रिय घराने से सम्बन्धित रहे होंगे। 14 वीतराग-विज्ञान भाग - ३ २५ आपका संस्कृत भाषा पर अपूर्व अधिकार था। आपकी गद्य और पद्य दोनों प्रकार की रचनाओं में आपकी भाषा भावानुवर्त्तिनी एवं सहज बोधगम्य, माधुर्यगुण से युक्त है। आप आत्मरस में निमग्न रहनेवाले महात्मा थे, अतः आपकी रचनायें अध्यात्म-रस से ओतप्रोत हैं। आपके सभी ग्रन्थ संस्कृत भाषा में हैं। आपकी रचनायें गद्य और पद्य दोनों प्रकार की पाई जाती हैं। गद्य रचनाओं में आचार्य कुन्दकुन्द के महान ग्रन्थों पर लिखी हुई टीकायें हैं। १. समयसार की टीका जो 'आत्मख्याति' के नाम से जानी जाती है। २. प्रवचनसार की टीका जिसे 'तत्त्वप्रदीपिका' कहते हैं। ३. पञ्चास्तिकाय की टीका - जिसका नाम 'समयव्याख्या' है। ४. तत्त्वार्थसार - यह ग्रन्थ गृद्धपिच्छ उमास्वामी के गद्य सूत्रों का एक तरह से पद्यानुवाद है। ५. पुरुषार्थसिद्ध्युपाय - गृहस्थ धर्म पर आपका मौलिक ग्रन्थ है। इसमें हिंसा और अहिंसा का बहुत ही तथ्यपूर्ण विवेचन किया गया है। प्रस्तुत अंश आपके ग्रन्थ पुरुषार्थसिद्धट्युपाय पर आधारित है। तार्ते बहुत कहा कहिए, जैसे रागादि मिटावने का श्रद्धान होय, सो ही श्रद्धान सम्यग्दर्शन है। बहुरि जैसे रागादि मिटावने का जानना होय, सो ही जानना सम्यग्ज्ञान है । बहुरि जैसे रागादि मिटें, सो ही आचरण सम्यक्चारित्र है। ऐसा ही मोक्षमार्ग मानना योग्य है। - मोक्षमार्गप्रकाशक, सस्ती ग्रंथमाला, दिल्ली, पृष्ठ ३१३

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