Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 21
________________ दशलक्षण महापर्व वीतराग-विज्ञान भाग -३ विनोद - और आर्जव ? जिनेश- निश्चय से त्रैकालिक आर्जवस्वभावी आत्मा के आश्रय से तीन प्रकार के माया के त्यागरूप शुद्धि का होना उत्तम आर्जव धर्म है तथा निश्चय आर्जव के साथ ही कपटरूप अशुभभाव न होकर शुभभावरूप सरलता का होना व्यवहार से उत्तम आर्जव धर्म है। इसीप्रकार त्रैकालिक शौचस्वभावी आत्मा के आश्रय से तीन प्रकार के लोभ के त्यागरूप शुद्धि निश्चय से उत्तम शौच धर्म है और निश्चय शौच के साथ लोभरूप अशुभभाव न होकर शुभ भावरूप निर्लोभता का होना व्यवहार से उत्तम शौच धर्म है। विनोद-और सत्य बोलना तो सत्य धर्म है ही? जिनेश - अरे भाई ! वाणी तो पुद्गल की पर्याय है, उसमें धर्म कैसा ? त्रैकालिक ज्ञानस्वभावी आत्मा के आश्रय से जो तीन कषाय के अभावरूप शुद्ध परिणति है, वही निश्चय से उत्तम सत्य धर्म है और निश्चय सत्य धर्म के साथ होनेवाला सत्य वचन बोलनेरूप शुभभाव व्यवहार से उत्तम सत्य धर्म है। इसीप्रकार त्रैकालिकसंयमस्वभावी आत्मा के आश्रय से होनेवाली तीन कषाय के अभावरूप शुद्ध परिणति निश्चय से उत्तम संयम धर्म है और निश्चय संयम के साथ होनेवाली मुनि भूमिकानुसार हिंसादि से पूर्ण विरति और इन्द्रियनिग्रह व्यवहार से उत्तम संयम धर्म है। विनोद - भाई ! तुम तो बहुत अच्छा समझाते हो, समय हो तो थोड़ा विस्तार से कहो? जिनेश- अभी समय कम है, प्रवचन का समय हो रहा है। प्रतिदिन शाम को इन्हीं दश धर्मों पर प्रवचन होते हैं, अत: विस्तार से वहाँ सुनना । अभी शेष तप, त्याग आदि को भी संक्षेप में बताना है। त्रैकालिक ज्ञानस्वभावी आत्मा के आश्रय से तीन कषाय के अभावरूप शुद्धि निश्चय से उत्तम तप धर्म है तथा उसके साथ होनेवाला अनशनादिसंबंधी शुभभाव व्यवहार से उत्तम तप धर्म है। त्रैकालिक ज्ञानस्वभावी आत्मा के आश्रय से तीन कषाय के अभावरूप शुद्धि निश्चय से उत्तम त्याग धर्म है और उसके साथ होनेवाला योग्य पात्रों को दानादि देने का शुभभाव व्यवहार से उत्तम त्याग धर्म है। इसीप्रकार त्रैकालिक ज्ञानस्वभावी आत्मा के आश्रय से तीन कषाय के अभावरूप शुद्धि निश्चय से उत्तम आकिंचन धर्म है और उसके साथ होनेवाला परिग्रह का त्यागरूप शुभभाव व्यवहार से उत्तम आकिंचन धर्म है। आनंदस्वभावी परम ब्रह्म त्रैकालिक आत्मा में चरना, रमना अर्थात् लीन होनेरूप शुद्धि निश्चय से उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म है और उसके साथ होनेवाला स्त्री संगमादि का त्यागरूप शुभभाव व्यवहार से उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म है। विनोद - निश्चय और व्यवहार धर्म में क्या अंतर है? जिनेश - जो उत्तम क्षमादि शुद्ध भावरूप निश्चय धर्म है, वह संवर निर्जरा रूप होने से मुक्ति का कारण है और जो क्षमादिरूप शुभभाव व्यवहार धर्म है, वह पुण्य बंध का कारण है। विनोद - उक्त निश्चय-व्यवहाररूप उत्तम क्षमादि दश धर्म तो मुनिवरों के लिए हैं, पर हमारे लिए ........? जिनेश - भाई ! धर्म तो सबके लिए एक ही है। यह बात अलग है कि मुनिराज अपने उग्र पुरुषार्थ द्वारा अनन्तानुबंधी आदि तीन कषाय के अभावरूप विशेष शुद्धि प्राप्त कर लेते हैं और गृहस्थ अपनी भूमिकानुसार दो या एक कषाय के अभावरूप अल्पशुद्धि प्राप्त कर पाते हैं। प्रश्न - १. दशलक्षण धर्म क्या है ? वे कितने प्रकार के होते हैं ? नाम सहित गिनाइये। २. निश्चय और व्यवहार धर्म में क्या अंतर है ? स्पष्ट कीजिये। ३. निम्नलिखित में से किन्हीं तीन धर्मों को निश्चय और व्यवहार की संधिपूर्वक स्पष्ट कीजिये :उत्तम क्षमा, उत्तम सत्य, उत्तम तप, उत्तम आकिंचन और उत्तम ब्रह्मचर्य ।

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