Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 23
________________ बलभद्र राम वीतराग-विज्ञान भाग -३ अध्यापक - राम और लक्ष्मण ने लंका पर चढ़ाई कर दी। विभीषण, सुग्रीव, नल, नील, हनुमान आदि मण्डलेश्वर राजाओं ने राम-लक्ष्मण का साथ दिया और दुराचारी रावण की जो दुर्गति होनी थी, हुई अर्थात् रावण मारा गया और राम-लक्ष्मण की विजय हुई। सीता राम को वापिस प्राप्त हो गयी। चौदह वर्ष समाप्त हुए और राम-लक्ष्मण अयोध्या वापिस आकर राज्य करने लगे। छात्र- चलो ठीक रहा, संकट टल गया। फिर तो सीता और राम आनंद से भोगोपभोग भोगते रहे होंगे? अध्यापक-भोगों में भी आनन्द होता है क्या ? वे तो सदा विपत्ति के घर कहे गये हैं। जबतक आत्मा में मोह-राग-द्वेष है, तबतक संकट ही संकट है। सीता और राम कुछ दिन भी शान्ति से न रह पाये थे कि लोकापवाद के कारण गर्भवती सीता को राम ने निर्वासित कर दिया। भयंकर अटवी में यदि पुण्डरीकपुर का राजा वज्रजंघ उसे धर्म-बहिन बनाकर आश्रय न देता तो.... छात्र - फिर ........? अध्यापक-पुण्डरीकपुर में ही सीता ने लव और कुश दोनों जुड़वाँ भाइयों को जन्म दिया। वे दोनों भाई राम-लक्ष्मण जैसे ही वीर, धीर और प्रतापी थे। उनका राम और लक्ष्मण से भी युद्ध हुआ था। छात्र-कौन जीता? अध्यापक- दोनों पक्ष ही अजेय रहे। हार-जीत का अन्तिम निर्णय होने के पूर्व ही उन्हें आपस में पता चल गया कि यह युद्ध तो पिता-पुत्र का है, अत: युद्धस्थल स्नेह-सम्मेलन में बदल गया। छात्र- चलो अब तो सीता के दु:खों का अन्त हुआ? अध्यापक-राग की भूमिका में दु:खों का अन्त हो ही नहीं सकता । दु:ख के अन्त का उपाय तो एकमात्र वीतरागता ही है। छात्र - फिर क्या हुआ? अध्यापक - राम ने बिना अग्नि-परीक्षा के सीता को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया। छात्र - फिर....? अध्यापक- महासती सीता ने अग्नि-प्रवेश करके अपनी पवित्रता प्रकट कर दी । भयंकर अग्नि की ज्वाला भी शीतल शान्त जलरूप परिणमित हो गई। शील की महिमा से देवों द्वारा यह चमत्कार किया गया। छात्र - फिर तो राम ने सीता को स्वीकार कर लिया होगा? अध्यापक- हाँ, राम तो सीता को स्वीकार करने को तैयार हो गये थे, पर सीता ने गृहस्थी की आग में जलना स्वीकार नहीं किया: क्योंकि उसने अच्छी तरह जान लिया था कि भोगों में सुख नहीं है: सुख प्राप्ति का उपाय तो मात्र वीतरागी मार्ग ही है। अत: वे आर्यिका के व्रत धारण कर आत्मसाधना में रत हो गईं। छात्र- और राम..........? अध्यापक - राम भी कुछ काल बाद संसार की असारता देख वीतरागी साधु हो गये और आत्मसाधना की चरम स्थिति पर पहुँच कर राग-द्वेष का नाश कर पूर्णज्ञानी (सर्वज्ञ) बन गये। छात्र - यह रामकथा तो बड़ी ही रोचक एवं शिक्षाप्रद है। इसमें तो बहुत आनन्द आया और अनेक नई बातें भी समझने को मिलीं। जरा विस्तार से समझाइए न गुरुजी! अध्यापक - विस्तार से सुनाने का समय यहाँ कहाँ है ? यदि विस्तार से जानना चाहते हो तो तुम्हें रविषेणाचार्य द्वारा लिखित पद्मपुराण का स्वाध्याय करना चाहिए। छात्र-वह तो संस्कृत भाषा में होगा? अध्यापक-हाँ, मूल तो वह संस्कृत भाषा में ही है, पर पण्डित दौलतरामजी कासलीवाल ने उसका हिन्दी अनुवाद भी कर दिया है। छात्र - वह कहाँ मिलेगा? अध्यापक - मंदिरजी में । भारतवर्ष के प्रत्येक जैन मंदिर में पद्मपुराण पाया जाता है और उसे अनेक लोग प्रतिदिन पढ़ते हैं। प्रश्न - १. श्री राम की कथा अपने शब्दों में लिखिये? २. हनुमान आदि को बंदर और रावणादि को राक्षस क्यों कहा जाता है? ३. भगवान किसे कहते हैं ? राम और हनुमान भगवान हैं या नहीं ? यदि हाँ, तो कारण दीजिये?

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