Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 24
________________ पाठ ११ समयसार स्तुति (हरिगीत) संसारी जीवनां भावमरणो टालवा करुणा करी। सरिता बहावी सुधा तणी प्रभु वीर! ते संजीवनी ।। शोषाती देखी सरितने करुणाभीना हृदये करी। मुनिकुन्द संजीवनी समयप्राभूत तणे भाजन भरी।। (अनुष्टप) कुन्दकुन्द रच्यू शास्त्र सांथिया अमृते पूर्या, ग्रन्थाधिराज! तारामां भावो ब्रह्मांडना भर्या । (शिखरिणी) अहो! वाणी तारी प्रशमरस-भावे नीतरती, मुमुक्षुने पाती अमृतरस अंजलि भरी भरी। अनादिनी मूर्जा विष तणी त्वराथी उतरती, विभावेथी थंभी स्वरूप भणी दोड़े परिणती ।। (शार्दूलविक्रीड़ित) तूं छै निश्चयग्रन्थ भंग सघला, व्यवहारमा भेदवा, तुं प्रज्ञाछीणी ज्ञानने उदयनी, संधि सहु छेदवा। वीतराग-विज्ञान भाग -३ साथी साधकनो तुं भानु जगनो, संदेश महावीरनो, विसामो भवक्लांतना हृदयनो, तूं पंथ मुक्ति तणो।। (वसंततिलका) सूण्ये तने रसनिबंध शिथिल थाय, जाण्ये तने हृदय ज्ञानी तणां जणाय । तुं रूचतां जगतनी रुचि आलसे सौ, तुं रीझतां सकलज्ञायक देव रीझे ।। (अनुषटुप्) बनाईं पत्र कुन्दनना, रत्नोंना अक्षरो लखी। तथापि कुन्दसूत्रोना अंकाये मूल्य ना कदी।। समयसार-स्तुति का भावार्थ हे महावीर! आपने संसारी जीवों के भाव-मरण (राग-द्वेषरूप परिणमन) को टालने के लिए करुणा करके सच्चा जीवन देनेवाली, तत्त्वज्ञान को समझाने वाली दिव्यध्वनिरूपी अमृत की नदी बहाई थी; उस अमृतवाणीरूपी नदी को सूखती हुई देख कर कृपा करके भावलिंगी सन्त मुनिराज कुन्दकुन्दाचार्य ने समयसार नामक महाशास्त्र रूपी बर्तन में उस जीवन देनेवाली अमृतवाणीरूपी जल को भर लिया। पूज्य कुन्दकुन्दाचार्यदेव ने समयसार शास्त्र बनाया और आचार्य अमृतचन्द्र ने उस पर आत्मख्याति टीका एवं कलश लिखकर उस पर मंगलीक साँथिया बना दिया । हे महानग्रन्थ समयसार ! तुझ में सारे ब्रह्माण्ड का भाव भरा हुआ है। हे कुन्दकुन्दाचार्यदेव ! समयसार नामक महाशास्त्र में प्रकट हई आपकी वाणी शान्त रस से भरपूर है और मुमुक्षु प्राणियों को अंजलि में भरभर कर अमृत रस पिलाती है। जैसे विषपान से उत्पन्न मूर्छा अमृतपान से दूर हो जाती है, उसीप्रकार अनादिकालीन मिथ्यात्व-विषोत्पन्न मूर्छा तेरी अमृतवाणी के पान से शीघ्र ही दूर हो जाती है और विभाव भावों में रमी हुई परिणति स्वभाव की ओर दौड़ने लगती है।

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