Book Title: Virodaya Mahakavya
Author(s): Bhuramal Shastri
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 4
________________ -: प्रकाशकीय : राजस्थान प्रान्त महाकवि ब्र. भूरामल शास्त्री ( आ. ज्ञानसागर महाराज) की जन्मस्थली एवं कर्म स्थली रहा है। महाकवि ने चार-चार महाकाव्यों के प्रणयन के साथ हिन्दी, संस्कृत में जैन दर्शन, सिद्धान्त एवं अध्यात्म के लगभग 28 ग्रन्थों की रचना करके अवरूद्ध जैन साहित्य - भागीरथी के प्रवाह को प्रवर्तित किया । यह एक विचित्र संयोग कहा जाना चाहिये कि रससिद्ध कवि की काव्यरस धारा का प्रवाह राजस्थान की मरुधरा से हुआ । इसी राजस्थान के भाग्य से श्रमण परम्परोन्नायक सन्तशिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज के सुशिष्य जिनवाणी के यथार्थ उद्घोषक, अनेक ऐतिहासिक उपक्रमों के समर्थ सूत्रधार, अध्यात्मयोगी युवामनीषी पू. मुनिपुंगव सुधासागर जी महाराज, ससंघ का यहाँ पदार्पण हुआ। राजस्थान की धरा पर राजस्थान के अमर साहित्यकार के समग्रकृतित्व पर एक अखिल भारतीय विद्वत/ संगोष्ठी साँगानेर में दिनांक 9 जून से 11 जून 1994 तथा अजमेर नगर में महाकवि की महनीय कृति वीरोदय महाकाव्य पर अखिल भारतीय विद्वत् संगोष्ठी दिनांक 13 से 15 अक्टूबर 1994 तक आयोजित हुई व इसी सुअवसर पर दि. जैन समाज, अजमेर ने आचार्य ज्ञानसागर के सम्पूर्ण 28 ग्रन्थ मुनिश्री के 1994 के चातुर्मास के दौरान प्रकाशित कर/लोकार्पण कर अभूतपूर्व ऐतिहासिक काम करके श्रुत की महत् प्रभावना की। पू. मुनि श्री के सान्निध्य में आयोजित इन संगोष्ठियों में महाकवि के कृतित्व पर अनुशीलनात्मक-आलोचनात्मक, शोधपत्रों के वाचन सहित विद्वानों द्वारा जैन साहित्य के शोध क्षेत्र में आगत अनेक समस्याओं पर चिन्ता व्यक्त की गई तथा शोध छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करने, शोधार्थियों को शोध विषय सामग्री उपलब्ध कराने, ज्ञानसागर वाडूंमय सहित सकल जैन विद्या पर प्रख्यात अधिकारी विद्वानों द्वारा निबन्ध लेखन- प्रकाशनादि के विद्वानों द्वारा प्रस्ताव आये। इसके बाद 22 से 24 जनवरी तक 1995 में ब्यावर (राज.) में मुनिश्री के ससंघ सानिध्य में आयोजित "आचार्य ज्ञानसागर राष्ट्रीय संगोष्ठी" में पूर्व प्रस्तावों के क्रियान्वन की जोरदार मांग की गई तथा राजस्थान के अमर साहित्यकार, सिद्धसारस्वत महाकवि ब्र. भूरामल जी की स्टेच्यू स्थापना पर भी बल दिया गया, विद्वत् गोष्ठी में उक्त कार्यो के संयोजनार्थ डॉ. रमेशचन्द जैन बिजनौर और प. अरूण कुमार शास्त्री, ब्यावर को संयोजक चुना गया। मुनिश्री के आशीष से ब्यावर नगर के अनके उदार दातारों ने उक्त कार्यो हेतु मुक्त हस्त से सहयोग प्रदान करने के भाव व्यक्त किये। पू. मुनिश्री के मंगल आशीष से दिनांक 18.3.95 को त्रेलोक्य महामण्डल विधान के शुभप्रसंग पर सेठ चम्पालाल रामस्वरूप की नसियाँ में जयोदय महाकाव्य 2 खण्डों में) प्रकाशन के सौजन्य प्रदाता आर. के. मार्बल्स लि., किशनगढ़ के रतनलाल कंवरीलाल, के करकमलों द्वारा इस संस्था का श्रीगणेश आचार्य ज्ञानसागर वागर्थ विमर्श केन्द्र के नाम से किया गया। आचार्य ज्ञानसागर वागर्थ विमर्श केन्द्र के माध्यम से जैनाचार्य प्रणीत ग्रन्थों के साथ जैन संस्कृति के प्रतिपादक ग्रन्थों का प्रकाशन किया जावेगा एवं आचार्य ज्ञानसागर वाङ्मय का व्यापक मूल्यांकन - समीक्षा- अनुशीलनादि कार्य कराये जायेगें । केन्द्र द्वारा जैन विद्या पर शोध करने वाले शोधार्थी छात्र हेतु 10 छात्रवृत्तियों की भी व्यवस्था की जा रही है । इस केन्द्र से अनेकों ग्रन्थ प्रकाशित किये जा चुके है इस ग्रन्थ को पुनः प्रकाशित किया जा रहा है। मह्यकवि की कालजपी कृति जयोदय महाकाव्य पर मुनिश्री सुधासागर जी महाराज के 1995 चतुर्मास में वृहत्त्रयी को वृहच्चतुष्टयी के रूप में परिवर्तित करने का गौरव प्राप्त किया है। किशनगढ़ मदनगंज (राज.) में जयोदय महाकाव्य राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान वृहत्त्रयी में जयोदय महाकाव्य को जोड़कर वृहद् चतुष्टयी की शताधिक विद्वानों ने घोषणा कर प्रस्ताव पास किया है। अर्थात् शिशुपाल वध, किरातार्जुनीयं एवं नैषधीयचरित्र यह तीनों साहित्य जगत् में प्रमुख महाकाव्य माने जाते रहे हैं। लेकिन विद्वानों ने जब जयोदय महाकाव्य पढ़ा तो अनुभव किया कि इस महाकाव्य में उपरोक्त तीनों महाकाव्यों की अपेक्षा कई गुना काव्य कौशल प्रगट होता है। बारहवीं शताब्दी के बाद यह प्रथम महाकाव्य है जो वृहत्त्रयी के समकक्ष माना गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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