Book Title: Vijaychandchariyam
Author(s): Chandrashi Mahattar, Jitendra B Shah
Publisher: Shrutratnakar Ahmedabad
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पूजाष्टके अवशिष्टकथा ॥
११३ ता नूणं न हु चोरो सो को वि मुणीसरो वि चोरो त्ति ।। भणिऊण मज्झ सिट्ठो ता तं गंतुं खमावेमि ॥११७।। इय भणिऊणं राया नियपुरनरनारिलोयपरियरिओ । गंतूण मुणिवरिंदं खामइ नमिऊण भत्तीए ॥११८।। भयवं जो अवराहो तुज्झ कओ कह वि मोहमूढेण । सो सव्वो खमियव्वो पावस्स वि मज्झ पणयस्स ॥११९॥ इय भणिऊणं राया पुणो पुणो पणमिऊण मुणिनाहं । मुणिणा दिन्नासीसो उवविठ्ठो महियलुच्छंगे ।।१२०।। सुरकयकंचणपउमे उवविट्ठो सुरनरिंदपरिसाए । पभणइ तं नरनाहं मुणिनाहो महुरवयणेहिं ॥१२१॥ अन्नाणंधो जीवो पङिओ मोहाडवीइ ममि । नाणपहं अलहंतो कं दुक्खं जं न पावेइ ॥१२२॥ अन्नाणं खलु कट्टे कट्ठयराउ वि पावकम्माओ । लोगो हियमहियं वा न जाणए जेण आवरिओ ॥१२३॥ असहायस्स सहाओ संजाओ मज्झ नत्थि तुह दोसो । जेण मए कम्मरिऊं हणिऊणं संपयं पत्तं ।।१२४।। अज्ज वि धन्नो सि तुमं नरवर मा कुणसु नियमणे खेयं । जो कयदोसो वि तुमं पच्छायावं समुव्वहसि ॥१२५।। कयपावो वि हु सुज्झइ पच्छायावेण तावियसरीरो । जह य नरेसर अहयं पच्छायावेण संबुद्धो ॥१२६॥
१. न होइ । २. चोरु त्ति । ३. महुरवयणेणं । ४. जीवो । ५. सुहपयं । ६. वहसि पच्छा । ७. पडिबुद्धो ।
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