Book Title: Vicharratnakar
Author(s): Kirtivijay, Chandanbalashree
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 402
________________ [श्रीविचाररत्नाकरः ३३५ २५१ २१६ ३२३ २७१ १३१ २४३ २४० ३१७ २०४ ३४२] अन्नन्नदेसाण समागयाणं, अन्नया नवमे पुव्वे पच्चक्खाणे अप्पडिलेहियदूसे, अप्पत्तकारि नयणं, अब्भंतरमालिन्ने अब्भुट्ठाणे विणये, अभयं सुपत्तदाणं, अमणुण्णधण्णरासी, अम्मडस्स णो कप्पड़ अयएलिगाविमहिसीअयसो पवयणहाणी अरिखनेमिस्स अंते धम्म अर्केऽर्द्धास्तमिते, अर्द्धमासिकी संलेखना अलिएण व सच्चेण वा, अवताणगादिणिल्लोमं अवरे णथिकवादिणो वामलोकवादी भणंतिअवहारे दिवसतो पसत्थंमि अवादीद्धरणो नाहं, अवि केवलमुप्पाडे, अविणओवहाणेणं चेव अविदिण्णोवहि पाणा, अव्वाउलाण णिच्चोडुयाण अष्टशतानि मनःपर्यवज्ञानिनां असणाईया चउरो ४, असणाईया चउरो ४, असिवे ओमोयरिते, असुरादयो यावद्वनस्पतिकायिका असोगतरुपायवस्स अस्यानुपदमेवाथ, अस्सि च लोए अदुवा परत्था, अह केरिसए पुण्णाइं आराहइ वयमिणं? अह णं भंते ! असंजयभवियदव्वदेवाणं? [श्रा.कृ./२०६गा.] [ उत्त./अ.३वृ.] [नि.भा./४००१गा.] [वि.भा./३४०गा.] [नि.भा./६१७३गा.] [आव./मलय.वृ.] [उप.तर./६.तरङ्गे] [व्य.भा./३०७गा.] [औपपातिक./५०सू.] [नि.भा./४००३गा.] [नि.भा./१६२३गा.] [आव.बृहद्बतौ] [श्रा.विधौ/वि.वि.] [ज्ञातायाम्] [श्रा.वि.वृत्तौ] [नि.भा./४०१७गा.] [प्रश्न./१-२/११सू.] [व्य.भा./२४६गा.मध्ये] [उप.सि.वृत्तौ/१३पदे] [बृ.क.भा./५०२४गा.] [म.नि./मू.६००] [नि.भा./३९९८गा.] [नि.भा./६१६५गा.] [ज्ञातायाम्] [ ] [बृ.भा.६३८४] [नि.भा./३३५५गा.] [प्रज्ञा./२०पदवृत्तौ] [उत्त./अ.२३] [हैमऋषभचरित्रे] [सूय.श्रु.१/अ.७/३८४गा.] [प्रश्न.श्रु.२/अ.३/३८सू.] [भग..१/उ.२/३२सू.] ३०५ २४५ ११८ २७० २०३ २६९ २५६ २४३ २५० २४१ २०७ २०३ २०६ १२६ ७१ ratan-p\3rd proof 342

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