Book Title: Vicharratnakar
Author(s): Kirtivijay, Chandanbalashree
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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३५०] णाणीकम्मस्स खयट्ठणिक्खम्म दीणे परभोयणंमि, णिग्गंथं च णं गाहावइकुलं णिबंबजंबुकोसंब
[श्रीविचाररत्नाकरः [ओघनि./गा.१०६९]
२३६ [सूय.श्रु.१/अ.७/४०५गा.] [भग.व.८/उ.६/४०६सू.]
[प्रज्ञा./१-३९] [त] [राजप्रश्नीय./६१सू.]
१३५ [राजप्रश्नीय./४१सू.] [ राजप्रश्नीय./१२सू.] [स्था.३/२-१६२सू.]
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तए णं केसीकुमारसमणे चित्तं तए णं तस्स सूरियाभस्स तए णं से पाइत्ताणियाहिवई देवे तओ थेरभूमीओ पण्णत्ता। तओ न कप्पंति वाइत्तए (तओ अवायणिज्जा पण्णत्ता।) तओ भणियं नाइलेणं तओ सेहभूमीओ पण्णत्ता। तज्जोणियाण जीवाण तणपणगंमि वि दोसा, ततः पवित्रमृदुगन्ध... ततः शुचिः श्वेतवासाः, ततः सुयत्नेन तते णं सा चित्तगरसेणी तते णं केसीकुमारसमणे पएसिं तते णं तुम मेहा! तते णं सा काली अज्जा तते णं सा दोवई तते णं सा दोवती तते णं सुमुहे गाहावती तते णं से पंडुराया तते णं से विजए देवे तते णं से सुबाहुकुमारे ततो घृत-१ इक्षुरस-२ ततो विज्ञातनिर्दोषततोऽर्हद्भक्तिभरितो, तत्थ जइ देसओ आहारपोसहिओ तत्थ णं दससहस्सा उ
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[स्था.३/४-२१७सू.] [म.नि./मू.६७७मध्ये] [स्था.३/२-१६२सू.] [श्राव.दि./२२७गा.] [नि.भा./४००९गा.] [श्राद्धविधौ] [शत्रु.मा./६सर्गे] [श्राद्धविधौ] [ ज्ञाता./१-८-९१सू.] [राजप्रश्नीय./७८सू.] [ज्ञाता./१-१-१७/३८सू.] [ज्ञाता./२-१-१/२२०सू.] [ज्ञाता./१-१६/१७१सू.] [ज्ञाता./१-१६/१७५सू.] [विपाक.श्रु.२/अ.१/३७सू.] [ज्ञाता./१-१६/१७४सू.] [जीवा./३प्र./दीव./७९सू.] [विपाक.श्रु.२/अ.१/३७सू.] [श्राद्धविद्धौ] [ हैमऋषभचरित्रे] [श.मा./५सर्गे] [प्रति.अवचूर्णी ] [भग.व.७/उ.९]
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