Book Title: Vicharratnakar
Author(s): Kirtivijay, Chandanbalashree
Publisher: Bhadrankar Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 408
________________ ३४८] [श्रीविचाररत्नाकरः २४५ २४४ २९० २८७ २९१ २४४ ३१३ २९५ २५१ ३२९ ३१४ १५३ २९५ [ज] [नि.भा./४०१६गा.] [नि.भा./४००७गा.] [आ.प./२२९गा.] [व्य.भा./२६७१गा.] [भ.प./३२गा.] [स्था./९३८सू.] [नि.भा./४००८गा.] [म.नि./मू.७०] [ग.प्र./७२गा.] [नि.चूाम्] [आचा.श्रु.१/अ.३/उ.१/१११सू.] [आचा./अ.१/उ.३] [निशीथचूर्णी ] [ प्रज्ञा./१-१३८] [नि.भा./४२४५गा.] [व्य.भा./] [ओघ.भा./गा.८] [वि.भा./१०३गा.] [आव.हा.वन्दननिर्युक्तौ] [पाक्षिकसूत्रवृत्तौ] [प्र.सा.] [ओघनि./गा.१०६३] [वि.भा./३४२गा.] [व्य.भा./३१२गा.] [बृ.क.भा./२३५६गा.] [प्र.सा./८६३गा.] [उप.तर./६.तरङ्गे] [म.नि./मू.६२३मध्ये] [औपपातिक./४४सू.] [भग.व.३/उ.३] [सूय.श्रु.१/अ.११/५१६गा.] [नि.भा./१३४७गा.] जइ कारणे सलोमं तु जइ तेसिं जीवाणं, जइ पुण भत्तपरिन्नं, जइ वि य लोहसनाणो जइ सो वि सव्वविरई, जणवय १ संमय २ ठवणा ३, जत्तियमित्तावारा जत्थ य गोअम ! साहू, जत्थ य सन्निहिउक्खड जदि दंतअट्ठिमंसजरामच्चुसोवणीए नरे जलमग्गे सयजोअण... जस्स सचित्तरुक्खस्स जह अयगोलो धंतो, जह कारणंमि पुण्णे, जह बालो जंपतो जह रणो विसएसुं, जह सुहुमं भाविंदियजहण्णेण वि तिन्नि, जहण्णेण वि तिन्नि, जहण्णेण वि तिन्नि, जं जुज्जइ उवगरणे उवगरणं जं तेण पंचधणुसयजं सग्गहमि कीड, जाणंति जिणा कज्जं, जावज्जीवं गुरुणो, जिणसाहुसाहुणीए य, जिब्भकुसीले से णं अणेगहा जीवे णं भंते ! असंजए जीवे णं भंते ! सया समियं जे अ दाणं पसंसंति, जे अप्पणो असज्झायंसि २७५ २३१ ३२९ २०१ २०१ २०१ २१३ २७२ २६५ ३१९ ३२४ २५७ १३० ratan-p\3rd proof 348

Loading...

Page Navigation
1 ... 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452