Book Title: Varttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Author(s): Bakhtavarsinh
Publisher: Bakhtavarsinh

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Page 4
________________ र सुन मागधिभाष तिहारी,सब बैर त्याग हितधारी। आत पुष्प वृष्टि सुरकीनी,यश गावें सुरतिय झीनी। " चतुरानन की छवि छाजे,रवि कोटकचंद सुलाजे । तुम जानत है जग सारा,भवतारक विरध संभारा ॥९॥ .. वसु सहस नाम के धारी, तात नित धोक हमारी । जो दोष अठारह नामी, तुम नाशे अंतर्यामी ॥१०॥ More भव मांहिं फेरे नहिं आना,तुम कीना अविचलथाना।जह लोकालोक निहारी,उत्पादक वयध्रुव सारी॥११॥ इक समय माहिं तुमजाणी,संसार माहिजेप्राणी। सबके तुम ही रखवाला,सब जानत दीन दयाला॥१२॥ जे पढ़ें सुधी गुणमाला, तिनको हैभाग रिसाला । तातें क्या अरजसुकीजे, निज बास भृत्य को दीज॥१३ दोहा-चौबीसों जिनराज की,वरनी शुभगुणमाल । बखतावर सिंह जानिये, कहते रतनालाल ॥१४॥

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