Book Title: Vardhamanchampoo
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 4
________________ गद्यावली पधपरम्परा च प्रत्येकमप्यावहति प्रमादम् । हर्षप्रकर्ष तनुते मिलित्वा द्राक् बाल्यताहणवतोव कन्या । जीवन्धर चम्पू १.६ रामायण-चम्पू के प्रणेता भोजराज गद्य-समन्वित पध-सूक्ति को वाद्य से युक्त गायन के समान मानते हैं गद्यानुबन्धरस मिश्रितपद्यसूक्ति हूं या हि वाद्य-कल या कलितेब गोतिः । चम्पूरामायण, १.३ गद्य एवं पद्य के वर्णनीय विषयों का सामान्यत: विभाजन नही किया जा सकता परन्तु सूक्ष्मेक्षिका से दृष्टिपात करने पर अन्तर स्पष्ट हा जाता है। मानव-हृदय की रागात्मिका वृत्ति के प्रबाधक भाव छन्द के माध्यम से अत्यन्त सुचारुरूप से प्रकट किये जा सकते हैं तो बाह्य वस्तुओं के चित्र में बाद कामाय; अनः क्षिर माता प्रशित करता है । फलतः गद्य-पद्य के मिश्रित रूप का एकत्र बिन्यास अवश्य ही सचर एवं हृदयावर्जक रूप धारण कर लेता है। गद्य एवं पश्य के वण्य विषय पर कवियों का विशेष आग्रह नहीं रहा । उन्होंने अपनी इच्छानुसार जैसा चाहा वैसा वर्णन गद्य या पद्य किसी माध्यम से किया परन्तु इस मिश्रित शैली के नैसगिक चमत्कार की ओर उनका आकर्षण अवश्य रहा । चम्प के रचयिताओं की दृष्टि में चम्पू एक विलक्षण आनन्द का मुष्टि करता है, जो न मद्य काव्य के द्वारा जन्य है पीर न पद्य काव्य के द्वारा उद्भाव्य है। पं. मूलचन्द्र शास्त्री की यह रचना चम्पू-काव्य के अन्तर्गत परिगणित होती है । गद्य-पद्य मिश्रित प्रकृत काव्य-रचना, कठार तक-कंग दार्शनिक सिद्धान्तों का साहित्यिका भाषा के माध्यम से अपनी उत्कृष्ट कमनीयता के साथ प्रस्तुत करती है, यह निर्विवाद सत्य है। काव्य की भाषा अत्यन्त प्रांजल एब शेला प्रौढ़ तथा आकषक है । वर्णन को प्रचरता में यह किसी अन्य काव्य से न्यून नहीं है। कत्रि के पाण्डित्य का पद-पद पर दर्शन होता है । उस युग की धामिक एवं दार्शनिक प्रवःतयों का उन्होंने बड़ा ही रोचक विवरण प्रस्तुत किया है तथा उनन द्वारा विहित समाज एवं संस्कृति का उज्ज्वल चित्रण रसिकजना की प्रशंसा का विषय है । वर्णन में कवि का नैपुण्य कथानक को चकार बनाने में सर्वश्रा सक्षम है । कविवर मुलचन्द्र शास्त्री का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ। उनकी जन्मभूमि मालीन नामक कस्वा है जो सागर जिले के अन्तर्गत

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