Book Title: Vardhamanchampoo
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 3
________________ भारतवर्ष में सांसारिक जीवन के उपकरणों के सुलभ होने के कारण भारतीय समाज जीवन संग्राम के निकट संघर्ष से अपने को पृथक् रखकर, श्रानन्द की अनुभूतिको यथार्थ की उन्धिको अपना लक्ष्य बनाता है। इसीलिए संस्कृत काव्य जीवन की विषम परि स्थितियों के अन्दर ग्रानन्द के अन्वेषण में सदा संलग्न रहा है | आनन्द सत् चित् प्रानन्द स्वरूप ईश्वरीय शक्ति का विशुद्ध पूर्ण रूप है प्रतएव संस्कृत काव्य की ग्रात्मा रस है । रस का उन्मीलन कर श्रोता तथा पाठक के हृदय में आनन्द का उन्मेष करना ही काव्य का तरम लक्ष्य है। भारतवर्ष धर्मप्राण देश है। भारतीय धर्म का थाधारपीठ है अनन्तवीर्यशाली परमात्मा की सत्ता में अटूट विश्वास । भक्त भगवान् के चरणारविन्द में स्वयं को समर्पित कर देने में ही जीवन की सार्थकता मानता है । संसार की क्लेश-भावना जीव को तभी तक कलुषित तथा सन्तप्त बनाती है, जब तक वह अपने आराध्य का भक्त नहीं बन जाता, तब तक रागादिक शत्रु के समान सन्तापकारक हैं, यह संसार कारागृह है, यह सांसारिक मोहबन्धन पाण के समान है । यही कारण है कि शास्त्रीजी, जिन्होंने प्रस्तुत काव्य की रचना की है, वह रचना उनकी आध्यात्मिक भावभूमि से उद्भूत होकर शाश्वत काव्य-सृष्टि की परम्परा में अनुपम मुक्तापटली के समान प्रतिष्ठित हुई है । संस्कृत साहित्य में पद्य एवं गद्य काव्यों के अतिरिक्त चम्पू नाम से अभिहित काव्य-परम्परा का विपुल साहित्य उपलब्ध है। यह साहित्य अपने अपरिमित साहित्यिक सौन्दर्य, मधुर - विन्यास एवं रस-पेशलता को दृष्टि से श्रद्वितीय है। चम्पू काव्य का सर्वप्रथम काव्य- लक्षण, " गद्यपद्यमयी रचना" कहकर, दण्डी ने अपने काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ काव्यादर्श में किया है । गद्य काव्य गौरव तथा वर्णन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है तो प काव्य अपनी छन्दोबद्धता के कारण होनेवाली गेयता और लय-सम्पत्ति से समृद्ध माना जाता है। इन दोनों का मिश्रण वस्तुतः एक नूतन चमत्कार का अद्भुत कमनीयता का सर्जन करता है श्रतएव चम्पूकाव्य की रचना नेमण्डल को अनायास ही अपनी ओर प्राकृष्ट किया है । यह काव्य स्वसंवेद्य रस- पेशलता तथा वर्णनाजन्य माधुरी का उत्पादक होता है । जीवन्धर चम्पू के रचयिता हरिचन्द्र चम्पू को बाल्य और तारुण्य की सन्धि-स्थल में विद्यमान किशोरी कन्या के समान अधिक रसोत्पादक मानते हैं

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