Book Title: Vaidik Bhasha Me Prakrit Ke Tattva Author(s): Premsuman Jain, Udaychandra Jain Publisher: Z_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf View full book textPage 7
________________ वैदिक भाषा में प्राकृत के तत्त्व क (५) इ का ए एदं (सा० ६६६) एअं एंद्र (सा० ३९३) इंद्र, शय्या सेज्जा एतो (सा० ३५०) इतः एओ (६) ऋ के परिवर्तन प्राकृत में प्राचीन भारतीय आर्यभाषा के ऋ वर्ण का अभाव है और उसके स्थान पर अ, इ, उ, ए, रि आदि का प्रयोग होता है । यथा--- कराम (यजु १९-६२-१) करइ पितर (अथर्व ६-१२०-५) पितृ पिअर मातर (अ० ६-१२०-१) माअर पिता (अ० ६-१२०-२) पितृ पिआ-पिदा रजिष्ठम् (वै० प्र० ६-४-१६२) रुजिष्ठम्, ऋद्धि रिद्धि बुंद (निरुक्त पृ० ५२२) कुठ (ऋ. १-४६-४) कृत, पृथिवी गहें (वै० प्र.) ऋध, वृन्तम् ऐ का एक केवत कैवत, शैला वोढवे वोढवै, ऐरावण एरावण मेध्ये मेध्य, कैलास केलास सेन्यं (अ० का० १८-१-४०) सेन्य (८) औ का ओ२१ ओषधी औषधी ओषहि स्नोपशा स्वौपशा, कौमुदी कोमुई अय का ए त्रेधा ( यजु०५-१५-१) त्रयधा, सौन्दर्य सुन्देरं श्रेणी२२ श्रयणी, नयति नेति अन्तरेति (शत १-२-३-१८) अन्तरयति, कयली केली क्षेणाय२३ क्षयणाय, कयल केलं ཨ་ ༔ ༔ ༔ ཙྪཱ ཟླ་ སྨྱུ ༔ & # % ཟླདྡྷོ ཙྪཱ བློཝཾ ༔ ༔ བྷྱཱ ཐ་ एध९ सेला सैन्यं परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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