Book Title: Vaidik Bhasha Me Prakrit Ke Tattva
Author(s): Premsuman Jain, Udaychandra Jain
Publisher: Z_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf

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Page 14
________________ २७६ जैन विद्या एवं प्राकृतं : अन्तरशास्त्रीय अध्ययने मद्रिमा, पुण्यमा (ऋ ३,४३,२) पीणिमा, पुप्फिमा सखित्व (ऋ १,१०,६) सहितं (४८) अव्यय 'उ' और 'ओ' अव्यय का वैदिक और प्राकृत भाषा में प्रचुर प्रयोग-सूचना विस्मय, पश्चाताप आदि के अर्थों में हुआ है । 'ण'-'न' के रूप में 'इव' के अर्थ मे प्रायः प्रयोग हुआ है। मा-इम निषेध अर्थ में प्रयोग हुआ है। तावत् यावत् के लिए तत यत का प्रयोग वैदिक भाषा में हुआ है, और प्राकृत में त, य का प्रयोग हुआ है। ___ इसी तरह बहुत से अवयव ऐसे हैं जो प्राकृत और वैदिक भाषा में समान रूप में प्रयुक्त हुए हैं। (४९) समान अव्यय इह ( ऋ १, १३, १०) इह इध वा (ऋ १,६,९) हि ( ऋ१,६,७) वि (ऋ १,७,३) नहि ( अथर्व १,२१,३) जहि ( अ १,२१,२) नमो (अ, शु१) कुह (ऋ. १,४६,९) कदु ( ऋ१,१८१,१) याव ( अ ४,१९,७) जाव अथा ( यजु १२,८,१) अध अह उं (८,९,१) कया ( किस ) ( साम १६८) कया अया ( इस ) ( साम १,२,४ ) अया आ ( अ २,१०,७) आ क्व ( सा २७१ ) आणि (ऋ १,३६,६) कुह कदु क्व दाणि परिसंवार-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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