Book Title: Vaidik Bhasha Me Prakrit Ke Tattva
Author(s): Premsuman Jain, Udaychandra Jain
Publisher: Z_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf
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वैदिक भाषा में प्राकृत
अहं, ह (अथ २, २७, ३) मो (अ १,१९,१)
मे (ऋ १४,९३,१) चतु० एक०
णो (ऋ १,१८,३) चतु० बहु अस्मे (ऋ १२,७२,२ )
होता है । ३१
के तत्त्व
(४५) समान शब्द
तुवं प्र० एक०
त्वम्
वो (अ ३,२,२) द्वि० बहु०
युस्मान्
(ऋ. १, ८, ९ ) तव (ऋ. १, २, ३) च० ए० तुभ्यं
तुभ्यं (ऋ १, २, ३)
वो (ऋ १,२०,५ ) ब० ब०
ता (ऋ ५,२१,४)
( अ ४, १४, ८) पंचमी एक०
रायो (युजु० १, १०, २)
छाग (यजु ० १९,८९,१ )
जाया
पिप्पलं (ऋ १,१६४,२२)
कहो (ऋ १,१८१, ५) पूतं (पवित्र) (यजु० १२,१०४, १)
(४६) विशेषण
"
मे (ऋ १,२३,२०) अ (१,३०, २) सप्त० एक०
मयि (ऋ १,२३,२२)
मयि
मे मयि
नोट - अस्मे चतु० बहु० का रूप सप्तमी बहुवचन के लिए भी प्रयुक्त
ते
अहम्
वयम्
मह्यम्
नः
पक्को (ऋ १,६६,२)
मूढा (अथ ६,६१,२)
अस्मभ्यम्
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युष्मभ्यम्
तस्मात्
राज
छाग
ककुभ
ሔ
अहं, हं
मो
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णो
अम्हे
तुवं
वो
ते तव
तुभ्यं
वो
ता
रायो
छाग
जाया
पिप्पलं
ककुहो
पूअ
२७५
पक्क पक्को
मूर मूढो
(४७) तद्वित
वैदिक भाषा में तद्धित शब्द रूपों का प्राकृत के समान ही प्रयोग देखा जा सकता है । यथा-
परिसंवाद -४
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