Book Title: Vaidik Bhasha Me Prakrit Ke Tattva
Author(s): Premsuman Jain, Udaychandra Jain
Publisher: Z_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf

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Page 10
________________ २७२ जैन विद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन जसो जामि जोइस, जमो लायण्णं चलणो कलुणो लोम थोर (२५) य को ज जुष्ठोहि (ऋ १-४४-२) युष्ट, यशः जज्ञानां (ऋ १-२३-४) यज्ञानां जामि (ऋ १-६५-४) यामि ज्योतिस् (ऋ४-३७-१०) द्योतिस्, यमः ___ अ० २-२८-७) (२६) व कोय पृथुजवः (नि० पृ० ३८३) पृथुजयः, लावण्यं (२७) र को ल मधुला (ऋ १-१९१,७०) मधुर, चरण करुणः लोम (अ० ४-१२-४) रोम (२८) ल को र सरिर२९ सलिल, स्थूल (२९) ह को भ गृभीतां (ऋ १-१६२-२) गृहीत (३०) ह को घ सुदुघां (साम सू० २९५) सुदुहां, संहार सवर्दुघां (सा० सू० २९५) सर्वदुहां, दाह विदेघ (शत० ब्रा० ४-१-३-१०) विदेह (३१) संयुक्त व्यञ्जन क्ष को च्छ अच्छ (अथ-३-४-३) अक्ष, वृक्ष ऋच्छला ऋक्षला, रूक्ष परिच्छ परिच्छव, सादृश्ये कुक्षिः (३२) व्यञ्जन द्वित्व प्रवृत्ति वीर्येण यजु ५-२०-१) वीर्येण, पर्यत सूर्य्यरूप (यजु ४-३५-९) सूर्य गंभीअ संघार दाघ विदेघ वच्छ रिच्छ सारिच्छं कुच्छी पज्जंत सुज्ज परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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