Book Title: Uvvatbhashya
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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir नोस्माकं वरुणम् अवयवअवगत्ययज / अवपूर्वीयजति शनार्थः इहतु धात्वन्तरयोगात्स्वा र्थमेववक्ति / ततः सुमृडोकं सुखकरंहवि: वीहिभक्षय / नः अस्माकं मुहवः स्वाह्वान: एधि // 4 // 21 3 (1) महीमूषु / आदित्यचरोर्याज्यानुवाका विष्ट भी महीम्महतीम् / जसूनिपातोपसर्गों छन्दः परिपूर्तिफलौ। मातरंनिर्मात्रौं साधुब्रतानाम् / तस्ययनसापत्नीं जायांपालयित्रीवा। अवसेब्बोहिमृडीकसुहोनऽएधि // 4 // मुहीमूषु // मातरवतानाम् / तस्युपत्नोमव॑सेहुवेम // तुविक्षुत्वामुजरन्तीमुरुचौ सुशौणुम दितिसुष्प्रणौतिम् // 5 // सुत्रामाणम्पृथिवीम् // सुत्राणिम्पृथिवी अवनायतर्पणायवा हुवेमाहयाम / तुविक्षत्राम् / वहुक्षरणांवा वहुक्षतवाणावा / अज रन्तौंजरारहिताम् उरूचीबहुव्यञ्चनां सुशर्माशंकल्यासाश्रयां साधुसखयाम् अदितिमदीनाम्।। र सुप्रणीतिंसुप्रणेत्रीम् // 5 // सुत्रामाणम् / साधुपालयित्रीम् पृथिवीम् पृथिवीमिव लुप्तोपमानॐ (1) का आदित्यस्य सुत्रामाणम् महीमूषु मातरमिति / आदित्यं चरूं यक्ष्यमाणो निर्वपत्यादित्यमीजान इत्यादावन्त चादितास्यथरुरुक्तस्तसुत्रामाणमिति पुरोऽनुवाक्या महीमू विति याज्या / शिवम् 474 For Private And Personal

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