Book Title: Uvvatbhashya
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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir पयस्यायाज्यानुवाक्ये गायत्रीविष्ठ भौ। आउक्षतम् आसिञ्चतम् नः अस्माकम् हेमित्रावरुणौ। घृतै: अक्षारोदकैः गव्यूतिम् गविपृथिव्यामवनहेतुभूतंक्षेत्रंगोप्रचारंवा। किञ्च मध्वारजांसि / मधुस्वादोदकेनरजांसि। लोकारजांस्युच्यन्ते। ताउक्षतम् / हेसुक्रतू / सुकर्माणौ // 8 // प्रवाहवा। प्रसिसृतम् अन्तर्भावितण्यर्थः / प्रसारयतम्। वाहवा बाहू / किमर्थमितिचेत् / सिसुक्रतू // 8 // प्रवाहा // सिमृतञ्चीवर्सनुऽानोगव्यूंतिमुक्षत डुतेन // आमाजनेश्श्रवयतंय्यवानाश्श्रुतम्मैमित्त्रावरुणाहवेमा॥६॥ शन्नः // शन्नोभवन्तुब्बाजिनोहर्वेषुदेवातामित'वस्खुर्का: // जुम्भ जीवसेनः। जौवनायास्माकम। वाहुप्रसारणंजीवनहेतुप्रतिपक्षनिराकरणायेत्यर्थः / तताउक्षतम् आभिमुख्येनसिञ्चतम न: अम्माकम् गातिम् / गविपृथिव्यासूतिमवनम् जीवनहेतुभूतानिनेवाण्यवाभिप्रेतानि / तदर्थंहि वृष्टिः प्रार्थ्यमाना दृष्टार्थाभवति / गोजातिविषयभूतांवा ऊतिम् अवनमार्गम् भक्षणमागी भिप्रायती गोप्रवाटमितियावत् / घृतेनाक्षारोदकेन / आमाजने शिवम् For Private And Personal

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