Book Title: Uvvatbhashya
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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir पूषखान्पष्णासंयुक्तः। स्तोर्णबर्हिस्तीर्णवहिर्यसासतथोक्तः / अमर्त्यः अमरणधर्मा / बृहतीछन्द त्रिवत्मश्च गौःएतेइन्द्रियंवयश्चन्द्र दधुः // 15 // दुरोदेवीः / दुरः द्वारः प्रयाजदेवताः छान्दसंसंप्रसाणम् / देवीः देव्यः दिशश्च / महीः महत्यः / ब्रह्माचदेव: बृहस्पतिश्च / पंक्ति छन्दः / इहल्यभिनयनिर्देश: / इहयज्ञावयवे दूहइन्द्रशरीरावयवे / तुर्यवाट्गौश्चइन्द्रियवयपूंषुगवान्त्स्तीर्णबर्हिरमर्त्य॥हुतीच्छन्दै इन्द्रियन्वित्मोगोर्बयो / दधुः // 15 // दुरौदेवी // दरौटुवौद्दि शोमहोब्रुमादेवीबहस्पतिः पतिश्छन्दऽहुहेन्द्रियन्तुर्भुवाङ्गौवयोदधु // 16 // उषयच्वीसुपेश / साविश्वेदेवाऽअम॑ण्ड // त्विष्टुप्च्छन्देऽहुहेन्द्रियम्बष्ठुवाझौर्बयो / चदधुः // 16 // उषेयह्वी / उषेति द्विवचनसामर्थ्यात्मह चरितत्वाच्च हितीयाराविह्यते। 5 उषाश्चरात्रिश्च / किदृश्यौ यह्वीमहत्यौ / सुपेशसासाधुरूपे। विश्वचदेवाः अमाः अमरणधर्माणः / विष्ट पच्छन्दः। दूहन्द्रयत्नयोः / पष्ठवाट्च गौःपष्ठभारंवहतीतिपष्ठवाट / इन्द्रि For Private And Personal

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