Book Title: Uvvatbhashya
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsur Gyanmandir यंवयश्चदधुः // 17 // दैव्याहोतारा अयंचाग्निः असौचमध्यमः / भिषजौ इन्द्रेणसयुजीसंयुक्तो समानकार्यो। युजापरस्परेणयुक्तौ / जगतीच्छन्दः अनडाश्चगौ:एते इंट्रेइंद्रियवयश्चदधुः // 18 // तिसडा। तिस्रोदेव्यः दूडासरखती। भारती। मरुतश्चविश: इंदुसरप्रजाः। विराटछन्दः / दधुः // 17 // दैब्याहोतारा // भिषजेन्द्रेणसुयुजाधुजा // जगती / च्छन्दऽइन्द्रियमनुडान्गौवयोदधु // 18 // तिस्रऽइडौ // तिस्राइ / डासरखतीभारतीमुस्तीविशः // विराट्च्छन्दऽदुहेन्द्रियन्धेनुग्रें। नव्वयोदधु // 16 // त्वष्टातुरोपः॥ त्वष्टातुरीपोऽअद्भुत इन्द्रा गगनीपुष्टुिवईना // पिंदाच्छन्दऽइन्द्र्यिमुक्षाग्गौनव्वयौदधुः॥२०॥ धनुर्दोग्ध्रौगौश्च / नकारश्चार्थे / एतेइंद्रियंवयश्च इदै दधुः // 18 // त्वष्टातुरीपः तूर्णमापन्नः अद्भुत: अड्डतद्रव महानित्त्यर्थः। इंदाग्नीचपुष्टिवईनौ। बिपदाचछन्दः / उक्षागौन / नकारचार्थे / उक्षासक्ताचगौः। एतेइंद्र इंद्रियंवयश्चदधुः // 20 // शमितान: शमयितातिप्राप्ते For Private And Personal

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