Book Title: Uvvatbhashya Author(s): Publisher: View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir मेतत् / द्यामनेहसम् द्यामिववाहयित्वौं जीवनहेतुभूताम् सुशर्माणंसाधुशरणां शोभनाथयांवा। अदितिमदीनाम् / सुप्रणौतिंसुप्रणेचीम। दैवीयज्ञमयांनावं / म्वरित्रांसाधुकेन्दुवालाम् अरित्रशब्दः केन्दुवालवचनः। अनागसमनपराधाम् अस्रवन्तीम्अपूर्यमाणामुदकेन। अनवच्छिन्नसान्यामनुहस सुशाणुमर्दितिसुप्पणौतिम् // दैवीन्नाव 19 खरि / त्वामागसमस्रवन्तोमारुहेमाखुस्तये // 6 // सुनावमारहेयम् // सुनावुमारहेयमस्रवन्तीमागसम् // शुतारित्वा स्वस्तये // 7 // आनः // आनौमित्वावरुणाघुतैर्गय॑तिमुक्षतम् // मद्ध्वारा धुकर्मदायिनीमित्यर्थः / आरुहम। स्वस्तयेअविनाशाय // 1 / सुनावम् / गायत्री / तई सर्वएवयजीनौः स्वर्ण्यतिथुतेरुपकल्पना / कल्याणींनावम् आरुहेयम् अस्रवन्तीम् अच्छिद्राम् निर्दोषामित्यर्थः अनागसमपापाम् अभीष्टितार्थसाधनतत्परामित्यर्थः / शतारित्रांवहुकेन्दुवालाम् ऋग्यजुः सामाभिप्रायम् स्वस्तयेअविनाशाय। संसारसागरोत्तरणायवा // 7 // (1) आनः / मैत्रावरुण्या: (1) का. पा नः प्र बाहवेति परस्थायाः / 18 / 7 / 16 अवभृथादुदेता मैत्रावरुण्या पयस्यया यजतीति या पयस्या तसा श्रा नो मित्रावणेति पुरोऽनुवाक्या प्र बाहवेति याज्या / मित्रावरुणदेवता गायत्री विश्वामित्रदृष्टा / 120. For Private And PersonalPage Navigation
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