Book Title: Uvvatbhashya Author(s): Publisher: View full book textPage 4
________________ Shri lavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsures (1) इमम्मे। इमम्मेनानुवाकेमेष्टिकहोत्रम् / प्रथमेवारुण्यौ गायीत्रिष्टुभौ वारुणस्यहविषो याज्यानुवाक्ये / हेवरुण त्वमेमम मंहवमावानं श्रुधिशृणुच अपरम् अद्यमृडयमुखय // श्रीगणेशायनमः // ॐ भूर्भुवस्वःतत्सवितुर्वरंगण्युम्भदेवस्य धीमहि धियोयोन प्रचोदयात् // * हुमम्मेव्वरुणप्रश्रुधौहवमुद्याच मृडय // त्वामत्स्युराचके // 1 // तत्त्वा // यामिब्रहमणाबन्दमा नुस्तदाशस्तुियजमानोहुविभिः // अहेडमानोवरुणहवोड्युरशस कालविलम्बनमाकृथाः यत: अहम् अवम्युः आत्मनोवनपालनमिच्छन् त्वाम् आचके / आचकइतिकान्तिकर्मा। कामये // 1 // तत्त्वायामि // 2 // त्वनः। अग्निवारुण्यात्रिष्टुभौ अग्नि(१) का. इसमे तत्त्वेत्ये ककपालस्य / अवभृथेष्टौ वारुणस्य ककपाल पुरोडाशस्य के पुरोऽनुवाक्यायाज्य इत्यर्थः / ___* इमम्मेसमिहो अग्निरेकादशकौटो वसंतैन ऋतुनाष ताय वत्समिधाग्नि हादशाश्विनौ छागस्यसप्तदेवंब हिवतु शषडे 473 कषष्टिः। For Private And PersonalPage Navigation
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