Book Title: Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Shreekrishnamal Lodha
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 13
________________ 1332. .. जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाड़क पालन करते, जबकि भगवान महावीर के श्रमण अल्पातिअल्प मूल्य वाले श्वेत वस्त्र धारण करते और पंच महाव्रतों का पालन करते। छोटे-मोटे अन्य भेद भी थे। केशीश्रमण और गौतम गणधर अपने-अपने शिष्यों सहित परस्पर मिले। गौतम गणधर ने केशोश्रमण की सभी शंकाओं का युक्ति संगत समाधान कर दिया। केशीश्रमण अपने शिष्यों के साथ भगवान महावीर की परम्परा में दीक्षित हो गए। दोनों का समन्वय हो गया... पच्चयत्थं च लोगस्स, नाणाविहविगप्पण।। जतत्थं गहणत्थं च, लोगे लिंगपओयणं । 123.32|| नाना प्रकार के उपकरणों का विधान लोगों की प्रतीति के लिए, संयमनिर्वाह के लिए है। साधुन्व के ग्रहण के लिए और लोक में पहिचान के लिए लिंग (वेषादि) की आवश्यकता है। कसाया अग्गिणो वुत्ता, सुयसीलतवोजलं । सुयधारामिहया संता, मिन्ना हु न डहति मे ।।23.53 ।। __ कषाय अग्नि है। श्रुत, शील और तप जल है। श्रुत रूप जलधारा से अग्नि को शान्त करने पर फिर वह मुझे नहीं जलाती। जरामरणवेगेणं, बुज्झमाणाण पाणिणं। धम्मो दीवो पइहा य, गई सरणमुत्तमं ।।23.98 जरा और मृत्यु रूप वेग से डूबते हुए प्राणियों के लिए धर्म द्वीप ही उत्तम स्थान और शरण रूप है। समन्वय का शुद्ध मार्ग इस अध्ययन में दिखाया गया है। 13. सच्चा ब्राह्मण कौन (जन्नइज्ज-पच्चीसवाँ अध्ययन) सच्चे ब्राह्मण का स्वरूप इस अध्ययन में बताया गया है। ब्राह्मण कुल में उत्पन्न जयघोष नाम का प्रसिद्ध और महायशस्वी विप्र था। वह यम रूप भावयज्ञ करने वाला था। उसी नगरी में वेदों का ज्ञाता विजयघोष नाम का ब्राह्मण यज्ञ करता था। यज्ञ हिंसक होते थे: भगवान महावीर ने हिंसा-विरोधी श्रमण-परम्परा का विरोध किया। भगवान महावीर ने जाति को जन्म से नहीं, परन्तु कर्म से माना। समयाए समणो होइ,बम्भचेरेण बभणो। नाणेण य मुणी होइ, तवेण होइ तावसो | 125.3211 समता से श्रमण, ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण, ज्ञान से मुनि और तप से तपस्वी होता है। कम्मुणा बम्भणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ। वइस्सो कम्मुणा होइ. सुद्दो हवइ कम्मुणा ।।25.33 ।। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये सब कर्म से होते हैं : इस अध्ययन में सच्चे ब्राह्मण के गुणे का दिग्दर्शन कराया गया है. जिससे ब्राह्मण जाति से अलग सच्चे ब्राह्मण को पहचाना जा सकता है । श्री जयघोष मुनि से उनम धर्म को सुनकर उनके सामने गृहन्याग कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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