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| उत्तराध्ययन सूत्र....
333 विजयघोष दीक्षित हो गए। दोनों मुनि तप-संयम से अपने पूर्व कर्मों का क्षय करके सर्वोत्तम सिद्ध गति को प्राप्त हुए। 14. गर्गाचार्य के कुशिष्यों का वर्णन (खलुकिज्ज-सत्ताईसवाँ अध्ययन)
इस अध्ययन में गर्गाचार्य के कुशिष्यों का वर्णन और आलसी बैल का उटाहरण है।
गर्माचार्य गुणवान आचार्य थे, जो सतत समाधि भाव में रहते थे। किन्तु उनके शिष्य टुष्ट बैलों की तरह उद्दण्ड, अविनीन और आलसी थे। उनके शिष्य साता में मस्त रहते थे, घमण्डी और अहंकारी बन गये थे नथा भिक्षाचरी में भी आलस करते थे। अयोग्य बैल के समान दुर्बल शिष्यों को धर्मध्यान में जोतने पर सफलता नहीं मिलती है। इस प्रकार अपने दुष्ट शिष्यों से दु:खी हुए वे सारथी आचार्य सोचने लगे कि मुझे इनसे क्या प्रयोजन है। अत: गर्गाचार्य ने शिष्यों को छोड़कर उग्रनप का आचरण करने का निश्चय किया।
मिउ--मद्दवसंपन्ने, गंभीरो सुसमाहिओ।
विहरइ महिं महप्पा, सीलभूएण अप्पणा ||27.17।। मृदु एवं सरल स्वभाव वाले, गम्भीर और समाधिवन्त वे महात्मा शील सम्पन्न होकर पृथ्वी पर विचरने लगे। (इ) आचार सम्बन्धी 1. अनगारों के संयमी जीवन के परीषह(परीसह पविभत्ती-द्वितीय अध्ययन) ___ इस अध्ययन में मानव को धीरता, वीरता, सहिष्णुता, तितिक्षा और समता का पाठ पढ़ाया गया है। सहिष्णुता व धीरता का उपदेश समग्र मानव जीवन के लिए है, इसे साधु जीवन तक सीमित करना उचित नहीं है। दु:ख को समभावपूर्वक सहन करना चाहिए। पीड़ा ढोने के लिए नहीं, सहने के लिए आती है। सुधर्मा स्वामी ने जम्बू स्वामी के पूछने पर २२ परीषह बताए हैं-- १. शुधा परीषह २. प्यास ३. शीत ४. उष्ण ५. डांस मच्छर आदि ६. वस्त्र की कमी या अभाव ७. अरति ८. स्त्री ९. विहार १० एकान्त में बैठना ११. शय्या १२. कठोर वचन १३. वध १४. याचना १५ अलाभ १६. रोग १७. तृण स्पर्श १८ मैल १९. सत्कार–पुरस्कार २०. प्रज्ञा २१ अज्ञान २२. दर्शन परीषह।
माइन्ने असणपाणस्रा... ||2.3।। साधक को खाने-पीने की मर्यादा का ज्ञान होना चाहिए।
अदीणमणसो चरे.... ||2.3 || संसार में अदीन भाव से रहना चाहिए।
न य वित्तासए परं..... ||2.20।।। किसी भी जीव को वारा अर्थात् कष्ट नहीं देना चाहिए।
सरिसो होइ बालाण....||2.24।। परे के साथ दग होना बचकान पन है।
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