Book Title: Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Shreekrishnamal Lodha
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 23
________________ 342 जिनवाणी- जैनागम साहित्य विशेषाङ्क क्रियाएँ, अब्रह्मचर्य, असमाधि स्थान, सबल दोष, पापश्रुत प्रसंग, महामोह स्थान, आशातना आदि कई विघ्नों का नाम निर्देश करके उनमें आत्म रक्षा करने की विधि बताई गई है । १७ प्रकार के असंयम से निवृत्त होना और १७ प्रकार के संयम में प्रवृत्त होना चारित्र विधि है । 5. कर्म प्रकृति (कम्मप्पयडी - तैंतीसवाँ अध्ययन ) इस अध्ययन में कर्मों के भेद, प्रभेद, गति, स्थिति आदि का वर्णन है । कर्मों के विविध स्वभाव, प्रतिसमय कर्मों के परमाणुओं के बन्ध, संख्या, उनके अवगाहन क्षेत्र का परिमाण, कर्मों की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति और कमों के फल देने की शक्ति के कारणभूत अनुभाग इत्यादि का गहराई से विश्लेषण किया गया है। कर्मबन्ध के चार प्रकार प्रकृति, प्रदेश, स्थिति और अनुभाग रूप का भी वर्णन है। ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय, वेदनीय मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र और अन्तराय आठ कर्म हैं। इनकी उत्तर प्रकृतियाँ इस प्रकार हैं · ज्ञानावरण- मति, श्रुत, अवधि, मन: पर्याय और केवलज्ञान । दर्शनावरण- निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, चक्षु अचक्षु, अवधिदर्शनावरण और केवलदर्शनावरण। वेदनीय - साता व असाता । मोहनीय-दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय। अनेक अवान्तर भेद । आयुष्य नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव नाम - शुभ व अशुभ । अनेक अवान्तर भेद । गोत्र- उच्च और नीच । अन्तराय - दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय, औ वीर्यान्तराय | इस अध्ययन में द्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव का स्वरूप भी वर्णित है कर्म जब तक विद्यमान रहते हैं तब तक जीव नाना गतियों और योनियों में परिभ्रमण करता रहता है। कर्म के कारण व्यक्ति भयंकर कष्ट पाते हैं औ नाना दुःख उठाते हैं। हम जो विश्व में विषमताएँ देखते हैं वे सब कर्मों के कारण हैं। तम्हा एसि कम्माण अणुभागे वियाणिया एएस संवरे वेब, खवणे य जए बुहे । । ।33.25 1 कर्मों के विपाक को जानकर बुद्धिमान पुरुष इनका निरोध एवं क्षर करने का प्रयत्न करे। 6. लेश्या (लेसज्झयणं- चौंतीसवाँ अध्ययन ) छ: लेश्याओं का स्वरूप, फल, गति, स्थिति आदि का वर्णन इस् अध्ययन में है । छः लेश्याओं के नाम हैं १. कृष्ण लेश्या २ नील लेश्य ३. कापोत लेश्या ४. तेजो लेश्या ५ पद्म लेश्या ६. शुक्ल लेश्या । ग्यार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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