Book Title: Updesh Tarangini
Author(s): Ratnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek Samiti

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Page 4
________________ 2 ते महान् विधान् तथा इतिहासिक बाबतोथी वधारे माहितगार हता, एम श्रा तेमनो रचेलो ग्रंथ स्पष्ट रीते सूचवी श्रापे बे. या ग्रंथ एटलो तो उपयोगी तथा रसिक बे के तेनुं श्र जगोए बिलकुल वर्णन नहीं करतां श्रमो मारा स्वधर्मी जैनबंधुने ते समस्त ग्रंथ आद्यथी ते अंतसुधी वांची जवानीज मो लामण करीए बीए. श्र ग्रंथ उपदेशक होवाथी ते परम वैराग्यथी जरपूर बनेलो बे. अने तेथी एटलुंज कहेवुं बस यशे के, दरेक जैन बंधु या ग्रंथनुं मनन करवुं. या ग्रंथ वांचवाथी जैनधर्मनुं ज्ञान थवानी साथे जैनधर्ममां यएला महान राजार्ज तथा शाहुकारोना इतिहासिक वृत्तांतोनी पण माहेतगारी मली शकशे अने तेथी मोने आशा ने के, दरेक जैनबंधु या ग्रंथ खरीद करी तेनो लान लेशे. या मूल ग्रंथ संस्कृत भाषामा होवाथी, छाने ते जाषानुं हालना समयमां सर्व जैनबंधुर्जने जाणपणुं न होवाथी मोए तेनुं गुजराती भाषांतर बपावी प्रसिद्ध करेलुं बे. तेमां प्रमादथी के मतिदोषथी जो कई विपरी के उत्सूत्र लखायुं होय ते " मिलामि डुक्करं " इत्यलं विस्तरेण. श्रावक भीमसिंह माणेक.

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