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श्री जिनाय नमः
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श्री उपदेशरत्नाकर.
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- 6-2005-06--
“श्री सर्वज्ञाय नमः श्री गुरुन्यो नमः' जयश्रीप्राप्तितो मोह-रिपोरमलकेवलः॥ | यो जगत्कृपया धर्म-मूचे तं श्री जिनं स्तुवे ॥ १ ॥ नाथः प्रजानां पुरुषार्थदेशनादनिष्टहर्ते : टकरश्च योऽनवत् ॥ तमादिमं भूमिभृतां तयाहतां । जगद्गुरुं श्रीऋषन्न प्रचुं स्तुमः॥२॥
• श्री सर्वपति नमस्कार यात्रो, श्री गुरुयो प्रति नमस्कार थाम्रो, जे (मोदरुपी) बद्दमीनी प्राप्तिथी | मोहरूपी शत्रने जीते , तया जे निर्मळ केवल ज्ञानवाळा , तथा जेणे जगत्पर कृपा नावीने धर्म उपदेशेलो जे, ते श्री जिनेश्वर प्रनुनी हुं स्तुति करुं बुं ॥ १ ॥ प्रजाओना स्वामी तया (धर्म, अर्थ, काम अने मोक्षरूपी) पुरुषार्योना उपदेशथी मुखने हरनारा, तथा सुख करनारा जे थया छे, तेमज जे राजाओमां तथा तीर्थक| रोमां पहेला छे, एवा जगत्ना स्वामी श्री ऋषजदेव प्रन्नुनी अमो स्तुति करीए बीए ॥३॥
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