Book Title: Updesh Ratnakar
Author(s): Lalan Niketan
Publisher: Lalan Niketan

Previous | Next

Page 14
________________ ॥ ५ ॥ 000000000 OOOOO स्तुवेतमुष्ट्रं विजहाति गोस्तनी - मसत्प्रलापैर्नतु निंदतीह यः ॥ स्वकार्यतो योऽप्युपजी'व्य दूषये-देतेः कवेर्वाचममुं तु धिक्खलं ॥ २९ ॥ कवेर्न दोषोऽयममुष्य यगिरं वदत्यऽदोषाभ पि दोषिणीं खलः ॥ रविर्न दुष्टोऽत्र यदस्य जांघिक - द्विषन् सुदीप्रामऽपि वेत्ति तामसीं ॥ २६ ॥ स्वंसकस्यार्हति नो गणः सतां । विदूरसूद मार्थ हगऽप्यऽहो न यः ॥ परस्य दोषान् महताऽप्य ap | नवति वा यो हृदय स्थितानऽपि ॥ २७ ॥ सदूषणास्ते न खलाः कथं स्यु- गृह येतान्यनुशास्त्रकं ॥ रीत्यैव संतः सगुणा गुणान् ये । समंततोऽप्याददते कवीनां ॥ २८ ॥ ते उंटनी हुं स्तुति करूं बुं, के जे द्राने तजि आप छे, परंतु असत्य वचनोथी तेनी निंदा करतो नयी, वळी ते खल मनुष्यने धिक्कार छे, के जे पोतानी मतलब साधी लेने असत्य वचनोद्वारा कविनी वाणीदूषित करे छे. ॥ २५ ॥ कविनी निर्दोष वाणीने पण खल मनुष्य जे दूषणवाळी कहे छे, ते कविनो दोष नयी, परंतु ते खलनोज दोष छे, केमके सूर्यनी तेज युक्त कांतिने पण घूवम जे अंधकारमय जाणे बे, तेमां कं सूर्य... दूपण वाळो नयी, (अर्थात् ते घूवरुज दूषण वाळो छे.) ॥ २६ ॥ जे सञ्जनोनो समुह दूरदर्शी तथा सूक्ष्म पदार्थोने. पण जोवावालो छे छतां पण आश्चर्यनी वात बे के, परना महान् दोषोने पण जे जोइ शकतो नयी, अथवा हृदयमा रहेक्षा ते दोषोने पण जे (मुखथी) प्रकाशतो नथी, एवो ते सज्जनोनो समुह कोनी स्तुतिने लायक नथी ? ॥ २७ ॥ ते खल मनुष्यो दूषण युक्त केम न होय ? के यो दरके शास्त्रनी रचनामांथी ते दूपणोनेज ग्रहण करे छे, वळी तेज रीतिथी सज्जनो गुण युक्त केम न होय. ? के यो चारे बाजुथी कविओोना गुलोने ग्रहण करे . ॥ २८ ॥ 00000. श्री उपेदशरत्नाकर.

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 406