Book Title: Updesh Ratnakar Author(s): Lalan Niketan Publisher: Lalan NiketanPage 10
________________ ॥ ३ ॥ शिवार्थिनां मंदधियां ततो नृणा - मनुग्रहार्थं विविधैर्निदर्शनैः ॥ व्यक्त्या विशुध्यादिनिदां जिनोदितं । धर्मं ब्रुवेऽन्यानपि तत्प्रसंगतः ॥ २० ॥ प्रारभ्यते स्वस्पधियापि तेनो-पदेशरत्नाकरनामशास्त्रं ॥ नानातंरंगादिमयोपदेशै - र्दधत्स्वरूपं स्वपरोपकृत्यै ॥ २१ ॥ विचार्यते शक्तिरथाप्यशक्तिर्न वै मया येन तयोर्विचारः ॥ परोपकारैकरसे कलंक - त्यत्र प्रवृत्तश्च तदेकहेतोः ॥ २२३ ॥ व्याख्यातॄणां बुद्धिभेदान् विजाव्य । श्रोतॄणामप्याशयान्नैकरूपान् ॥ तादृक् सामग्र्योपकार्योपकारं । जानेऽनेकैरेव धर्मोपदेशैः ॥ २३ ॥ माटे मोक्षना अर्थी एवा मंदबुद्धि माणसानो अनुग्रह माटे नानाप्रकारना दृष्टांतांवरे करीने विशुद्धि आदिक ने दोन व्यक्तिपूर्वक जिनेश्वर प्रनुए कहेलो : धर्महुँ कहुं बुं, तेम ते प्रसंगे बीजा धर्मोनुं स्वरूप पण हुं कहुं हुं ॥ २० ॥ अने तेटला मांटे मंदबुद्धि एवो पण हुं विविध प्रकारना तरंग आदिकवाळा उपदेशोवमे स्वरूपने धारण करनारा एवा या उपदेश रत्नाकर नामना शास्त्रनो मारा अने अन्योना उपकार माटे प्रारंभ करूं बुं ॥ २१ ॥ बळी (आ कार्यमां) हुं मारी शक्ति अथवा शक्तिनो पण विचार करतो नथी, केमके तेनो विचार करवो, ते परोपकाररूपी एक रसनी अंदर कलंक जेवो लागे बे, अने हुं तो अहीं फक्त एक परोपकार माटेज प्रवृत्त यलो हुं ॥ २२ ॥ व्याख्यान करनारायना बुद्धिना नेदोने, तेमज सांजळनाराओना पण अनेक प्रकारना आशयाने | जाणीने तेवी रीतनी सामग्रीव करीने अनेक प्रकारना धर्म संबंधि उपदशायीज उपकारी प्रोपर उपकार याय एम हुंजाएं बुं ॥ २३ ॥ * स्व नामने सार्थक करनारा.Page Navigation
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