Book Title: Tulsi Prajna 1995 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 12
________________ भक्ति की शक्ति से पिताकृत हर कष्ट का सामना कर अमरत्व को पा लिया । भक्त शिरोमणि मीरां भक्ति के आसन पर बैठकर विष-पान करके भी अमर हो गयी। ____ आचार्य मानतुंग, जिन्होंने भक्तिरस की तीक्ष्ण छैनी से चारों ओर लटकने वाले बड़े-बड़े तालों को खड़ाखड़ तोड़ डाला ! शोभजी श्रावक जो आचार्य भिक्षु के प्रति अटूट श्रद्धावान् थे, ने बन्दी अवस्था में जब अपने आराध्य को पुकारा तो शृंखलाएं स्वतः खुलकर दूर जा गिरी। यह सब क्या है ? एकमात्र भक्ति की शक्ति ही तो है। वर्तमान में भी यदि कोई साक्षात् भक्त का स्वरूप देखना चाहे तो आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का अवश्य दर्शन करे। इतने बड़े तेरापन्थ धर्मसंघ के सर्वोच्च पद पर आसीन होते हुए भी जब अपने गुरु चरणों में बैठते हैं तो उनका कण-कण भक्तिमयता से आप्लावित हो जाता है और दर्शक देख-देख कर गद्गद् हो जाते हैं। ___महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाश्रीजी जब अपने आराध्य की स्तवना में प्रातः चार बजे से ही तान छेड़ती हैं तो उनकी सन्निधि प्राप्त लोग उन्हीं में मीरां के स्वरूप का दर्शन करते हैं और उनकी लय में लय मिलाकर भक्ति रूप गंगोत्री में अभिस्नात् हो जाते हैं। आज सबसे बड़ी समस्या है सच्चे आराध्य की प्राप्ति । जब तक सम्यक् रूप से आराध्य का साक्षात् नहीं होता तब तक वांछित फल की प्राप्ति भी नहीं होती है । इसलिए यह विचार्य हो जाता है कि हमारा आराध्य या प्रभु कैसा हो ? जिसके सहारे हम स्व स्वरूप को प्राप्त कर सकते है, भवसागर तर सकते हैं। हमारा आराध्य, इतना समर्थ हो कि उसके प्रति हमारी आस्था कभी डगमगाए नहीं। दूसरी तरफ हमारी आस्था इतनी दृढ़ हो कि आराध्य में हमें सन्देह या शंका रहे ही नहीं। हमारे आराध्य में कुछ निर्दिष्ट मौलिक विशेषताएं भी अवश्य होनी चाहिए जिसका उपासक बन हमारा मानस सच्ची प्रसन्नता व शाश्वत सुख को प्राप्त कर सके। जिसकी आराधना हमें भी उसी के तुल्य बना देने का सामर्थ्य रखती हो । जो सचमुच पारसमणि की भांति लोहे को भी सोना बना सके, चुंबक की भांति स्वतः अपनी तरफ आकर्षित कर सके। भक्ति मोक्ष का मार्ग है। सच्ची भक्ति के लिए सच्चे आराध्य की प्राप्ति जरूरी है। बिना सच्चे आराध्य की प्राप्ति के सच्ची भक्ति नहीं होगी और बिना सच्ची भक्ति के मुक्ति भी नहीं और न सही जीवन का निर्माण होगा। अपने-अपने आराध्य का अपना-अपना स्वरूप होता है पर आज की अन्धाधुन्ध दौड़ में दौड़ने वाले लोगों को थामने के लिए और आगे आने वाली खाई में गिरने से बचाने के लिए एक दिशा निर्देश अपेक्षित है कि उनका आराध्य कैसा हो ? उनके स्तुत्य का स्वरूप कैसा हो ? जैनग्रन्थों के आधार पर आराध्य में निम्न गुण होने चाहिए जैसे वीतरागता, वराग्यशीलता, मुक्तिप्रदाता, शरणागतरक्षक, उपदेष्टा, शारीरिक सौंदर्य देवऋद्धिसंर २०, अंक ४ २६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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