Book Title: Trishashtishalakapurushcharitammahakavyam Parva 1
Author(s): Hemchandracharya, Charanvijay
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 4
________________ प्रकाशकीय निवेदन कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्यनी नवमी जन्म शताब्दीना उपलक्ष्यमा तेमनी महान काव्य रचनास्वरूप त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र नामक ग्रंथनु पुनर्मद्रण करतां अमे अपार हर्षनो लागणी अनुमवी छोओ. छत्रीश हजार श्लोकोमा पथरायेला अने २४ तीर्थकर भगवन्तो तथा अन्य शलाकापुरुषोनां विशव अने विस्तृत चरित्रो वर्णवतो आ ग्रंथ जैन संघना संस्कृत तेमज ऐतिहासिक साहित्यमां अपूर्व अलंकार स्वरूप ग्रंथ छे. आ ग्रंथनु पठन पाठन, तेनी रचना यइ त्यारथी मांडीने आज पर्यत जन संघमां अविरतपणे चाल्या ज कयु छ अने हजी पग एज प्रकारे ते ग्रंथ बंचातो रहेशे ते निःसन्देह छे.. आ ग्रंथनी एक करतां वधु आवत्तिओ, जुदा जुवा स्थळेथी प्रगट थइ छे. अने आजना फोटोस्टेट के ओफसेट मुद्रण पद्धतिना झडपी समयमा तो अत्यन्त झडपथी तेनी नकलो छपाइ रही छे, जे आ ग्रन्थनी मांग अने उपयोगितान द्योतन करे छे. परन्तु आ महानन्थन, जुदी जुदी प्राचीन ताडपत्रीय तथा अन्य हाथपोथोओना आधारे संशोधन करी, तेनी शुद्ध वाचना तथा उपलब्ध पाठांतरोनी नोंघ तथा विशिष्ट टिप्पणी वगेरे तैयार करवा पूर्वक आ ग्रन्थ प्रगट पाय ते अत्यन्त जरूरी हतु. केम के आ ग्रन्थ मात्र जैन साधु साध्वीओमा जनहि, पण जैनेतर समाजमा तेम ज विदेशी विद्वज्जगतमां पण खूब जिज्ञासापूर्वक वंचातो रह्यो छे अने या ग्रन्थना गूजराती ज नहि, पण विदेशी विद्वाने करेल अंग्रेजी अनुवादो पण प्रगट थया छे. आ संयोगोमां आ ग्रन्थना समीक्षित-संशोधित-शुद्ध वाचना तैयार करवी अत्यन्त अनिवार्य गणाय. आ वात आजथी छ दायका अगाउ व्यायांभोनिधि परमपूज्य जैनाचार्य श्री आत्मारामजी महाराजना पट्टधर पंजाबकेशरी परमपूज्य आचार्य श्रीविजयवल्लभसूरीश्वरजी म. ना प्रशिष्य विद्वत्प्रवर परमपूज्य मुनिराज श्री चरणविजयजी म. ना ध्यान पर आवी हती, अने सम्पूर्ण त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्रना सम्पायननु महान कार्य तेओओ आरंभ्यु हतु, जेना फळस्वरूपे वि. स. १९९२ (ई. १९३६) मां आ महाग्रन्थनो प्रथम पर्वात्मक प्रथम भाग, पुस्तकाकारे तेम ज प्रताकारे, भावनगरनी श्रीजैन आत्मानन्द समा तरफथी प्रगट थयो हतो. दुर्भाग्ये, पछी थोडा ज समयमा सम्पादक मुनिराज काळधर्म पामी जतां, बीजा भागनू शरु थयेलं काम अधूरुं रह जे त्यार पछी आगम प्रभाकर पूज्य मुनिराज श्रीपुण्य विजयजी महाराजे पूरुं करी आप्यु, अने ते बीजो भाग वि. सं. २००६ मां (ई-१९५०) ते ज सभा तरफथी प्रगट थयो हतो. आ बोजा भागमां २-३-४ पर्वोनो समावेश थयो छे. सं. २०४५ ना वर्षे, श्री कलिकालसर्वज्ञनी नवमी जन्मशताब्दीन निमित्त पामीने अत्यारे अलभ्यप्राय आ बन्ने मागोनु पनर्मद्रण करवानी तेमज आगळना अवशिष्ट पर्वात्मक भागोन सम्पादन-प्रकाशन करवानी भावना प. पू. आचार्यमहाराज श्रीविजयसूर्योदयसूरीश्वरजी महाराज तथा तेमना शिष्य पं. श्रीशीलचन्द्र. विजयजी गणीने थता तेओश्री अमोने प्रेरणा करतां अमोजे ते स्वीकारी लीधी. अने प्रथम तबकामां आजे तद्दन अप्राप्य अका प्रथम-द्वितीय भागोनु पुनम द्रण करवान नवकी कयु, जेना फळरूपे प्रस्तुत ग्रन्थ आपना हाथमां छे. आ बन्ने भागोना पनर्मद्रण माटे सम्मति आपवा बदल श्री जैन आत्मानन्द सभा-भावनगरनो अमे घणो घणो आभार मानीओ छोओ. अने आ बन्ने भागोनू झडपी पनर्मुद्रण करी आपवा बबल श्री सरस्वती पुस्तक भण्डार--अमदावावना संचालकोना पण अमे ऋणी छीओ. पुस्तकरूपे प्रगट थतां आ बे भागो आम तो जूनी आवृत्तिनु ऑफसेट पद्धतिथी करेलु पुनर्मुद्रण ज छ, तेम छतां आ आवृत्तिमां थोडांक परिशिष्टोनो उमेरो करवामां आव्यो छे ते आ प्रमाणे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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