Book Title: Trimantra
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 8
________________ त्रिमंत्र त्रिमंत्र होगा। क्योंकि इसमें उत्तम मनुष्यों, उच्चत्तम कोटि के जीवों को नमस्कार करना सिखलाया है। आप समझें कि क्या सिखाया गया है? प्रश्नकर्ता : नमस्कार करना। दादाश्री : इसलिए उनको नमस्कार करने से हमें फ़ायदा होगा, सिर्फ नमस्कार बोलने से ही फ़ायदा होगा। तब मालूम होगा कि 'यह तो मेरे अपने हित के लिए है।' जो अपने हित का हो, उसे जैन का मंत्र कैसे कहा जाये? पर मतार्थ की बिमारीवाले लोग क्या कहेंगे? 'यह हमारा नहीं हो सकता।' अरे, हमारा क्यों नहीं हो सकता? भाषा हमारी है, सभी हमारा ही है न? क्या हमारा नहीं है ? पर यह तो नासमझी की बातें हैं। वह तो जब इसका अर्थ समझायें तब समझ में आये। यह है त्रिमंत्र इसलिए हम इसे ऊँची आवाज़ से बुलवाते हैं न, नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरियाणं नमो उवज्झायाणं नमो लोए सव्वसाहूणं एसो पंच नमुक्कारो, सव्व पावप्पणासणो मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवई मंगलम् ॥ १॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ २॥ ॐ नमः शिवाय ॥ ३॥ जय सच्चिदानंद अभी इस नवकार मंत्र का अर्थ आपको समझाऊँगा तो आप ही कहेंगे कि यह तो हमारा मंत्र है। उसका अर्थ समझने पर आप छोड़ेंगे ही नहीं। यह तो आप ऐसा ही मानते हैं कि यह शिव का मंत्र है कि यह वैष्णव का मंत्र है। पर उसका अर्थ समझने की ज़रूरत है। मैं उसका अर्थ आपको समझाऊँगा, फिर आप ऐसा कहेंगे ही नहीं। नमो अरिहंताणं... प्रश्नकर्ता : 'नमो अरिहंताणं' यानी क्या? इसका अर्थ विस्तार से समझाइए। दादाश्री : 'नमो अरिहंताणं ।' अरि यानी दुश्मन और हंताणं यानी जिसने उनका हनन किया है, ऐसे अरिहंत भगवान को नमस्कार करता हूँ। जिसने क्रोध-मान-माया-लोभ-राग-द्वेष रूपी सारे दुश्मनों का नाश किया है, वे अरिहंत कहलाते हैं। दुश्मनों का नाश करने से लेकर पूर्णाहुति होने तक अरिहंत कहलाते हैं। वे पूर्ण स्वरूप भगवान कहलायें। वे अरिहंत भगवन् फिर चाहे किसी भी धर्म के हों, इस ब्रह्मांड में चाहे कहीं भी हों, उन्हें नमस्कार करता हूँ। प्रश्नकर्ता : अरिहंत देहधारी होते हैं ? दादाश्री : हाँ, देहधारी ही होते हैं। देहधारी न हों तो अरिहंत कहलाते ही नहीं। अरिहंत देहधारी और नामधारी, नाम के साथ होते हैं। प्रश्नकर्ता : अरिहंत भगवान यानी चौबीस तीर्थंकरों को संबोधित करके प्रयोग किया है क्या? दादाश्री : नहीं, वर्तमान तीर्थंकर ही अरिहंत भगवान कहलाते हैं। महावीर भगवान तो वहाँ पर मोक्ष में विराजमान हैं। वैसे लोग कहते हैं कि 'हमारे चौबीस तीर्थंकर (ही अरिहंत है) और एक तरफ पढ़ते हैं कि 'नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं।' तब मैं उनसे पूछता हूँ कि 'ये दो हैं?' तब कहते है कि, 'हाँ, दो हैं।' मैंने पूछा, 'अरिहंत के बारे में बताइये जरा।' तब कहते हैं कि, 'ये चौबीस तीर्थंकर ही अरिहंत

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