Book Title: Trimantra
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 6
________________ त्रिमंत्र त्रिमंत्र रहस्य, त्रिमंत्र समन्वय का प्रश्नकर्ता : इस त्रिमंत्र में तीन प्रकार के मंत्र हैं, एक जैनों का मंत्र, एक वैष्णवों का मंत्र, एक शैवधर्म का मंत्र, इनके समन्वय का क्या तात्पर्य है? इसका क्या रहस्य है? दादाश्री : भगवान निष्पक्ष होते हैं। भगवान को वैष्णव से, शिव से या जैन से कोई सरोकार (संबंध) नहीं है। वीतरागों के पक्षपात नहीं होता। पक्षवाले 'यह तुम्हारा और यह हमारा' ऐसा भेद करते हैं। 'हमारा' जो कहता है वह औरों को 'तुम्हारा' कहता है। जहाँ हमारातुम्हारा' होता है, वहाँ राग-द्वेष होता ही है। वह वीतराग का मार्ग नहीं है। जहाँ हमारा-तुम्हारा ऐसा भेद हुआ, वहाँ वीतराग का मार्ग नहीं होता। वीतराग मार्ग भेदभाव से रहित होता है। यह आपकी समझ में आता है? त्रिमंत्र से प्राप्ति पूर्ण फल की प्रश्नकर्ता : यह त्रिमंत्र है वह सभी के लिए है? और यदि सभी के लिए है तो किस लिए है? दादाश्री : यह तो सभी के लिए है। जिसे पाप धोने हैं उसके लिए है और पाप नहीं धोने हों तो उसके लिए नहीं है। __ प्रश्नकर्ता : इस त्रिमंत्र में नवकार मंत्र, वासुदेव और शिव, इन तीनों मंत्रों को साथ रखने का क्या प्रयोजन है? दादाश्री : सारा फल खाये और टुकड़ा-टुकड़ा खाये, इसमें फर्क नहीं है? वे त्रिमंत्र पूरे फल के रूप में हैं, पूरा फल! मंत्र-जप, फिर भी सुख का अभाव... ऋषभदेव भगवान ने एक ही बात कही थी कि ये जो देहरे (मंदिर) हैं, वे वैष्णववाले वैष्णव के, शैवधर्मवाले शिव के, जैनधर्मी जैन के, अपने-अपने देहरे बाँट लेना मगर ये जो मंत्र हैं उन्हें मत बाँटना। मंत्र बाँटने पर उनका सत्व उड़ जायेगा। पर हमारे लोगों ने तो मंत्र भी बाँट लिए और एकादशी भी बाँट ली, 'यह शैव की और यह वैष्णवों की।' इसलिए एकादशी का माहात्म्य नष्ट हो गया और इन मंत्रों का माहात्म्य भी नहीं रहा है। ये तीनों मंत्र साथ नहीं होने से, न तो जैन सुखी होते हैं, न तो ये दूसरे लोग सुखी होते हैं। इसलिए यह भगवान के कहने के अनुसार तीनों का समन्वय हुआ है। ऋषभदेव भगवान धर्म का मुख कहलाते हैं। धर्म का मुख यानी सारे संसार को धर्म की प्राप्ति करानेवाले वे खुद ही हैं। यह वेदांत मार्ग भी उनका स्थापित किया हुआ है और यह जैनमार्ग की स्थापना भी उनके ही हाथों हुई है (उस वक्त वह मार्ग निग्रंथ पंथ यानी वीतराग मार्ग के नाम से जाना जाता था)। और ये बाहर के लोग जिसे आदम कहते हैं न, वे आदम यानी ये आदिम तीर्थंकर ही है। वे आदिम के बजाय आदम कहते हैं। अर्थात् यह जो सब है वह उनका ही बताया हुआ मार्ग है। सांसारिक अड़चनों के लिए प्रश्नकर्ता : ऋषभदेव भगवान ने देहरे बाँटने को कहा मगर देहरों में सभी देवता तो एक ही हैं न? दादाश्री : नहीं, देवता सारे भिन्न-भिन्न हैं। सभी के शासनदेव भी अलग हैं। यह संन्यस्त मंत्र के शासनदेव अलग होते हैं। अन्य मंत्रों के शासनदेव अलग होते हैं, सभी देव अलग-अलग होते हैं।

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