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त्रिमंत्र
त्रिमंत्र
डर जायें। वासुदेव पद का बीज कब पड़ेगा? वासुदेव होनेवाले हों तब कईं अवतार पहले से ऐसा प्रभाव होता है। वासुदेव जब चलते हों तो धरती धम धमती है ! हाँ, धरती के नीचे से आवाज़ आती है। अर्थात् वह बीज ही अलग तरह का होता है। उनकी हाज़िरी से ही लोग इधर-उधर हो जाते हैं। उनकी बात ही अलग है। वासुदेव तो मूलतः जन्म से ही पहचाने जाते हैं कि वासुदेव होनेवाले हैं। कई अवतारों के बाद वासुदेव होनेवाले हों, उसका संकेत आज से ही मिलने लगता है। तीर्थंकर नहीं पहचाने जाते मगर वासुदेव पहचाने जाते हैं। उनके लक्षण ही अलग तरह के होते हैं। प्रतिवासुदेव भी ऐसे ही होते हैं।
प्रश्नकर्ता : तो तीर्थंकर पिछले अवतारों में कैसे पहचाने जाते
हैं?
दादाश्री : तीर्थंकर सीधे-सादे होते हैं। उनकी लाइन ही सीधी होती हैं। उनका दोष ही नहीं होता, उनकी लाइन में दोष ही नहीं आता और दोष आने पर किसी भी तरह से (ज्ञान से) वापस, वहीं के वहीं आ जाते हैं। वह लाइन ही अलग है। और वासुदेव तथा प्रतिवासुदेव को तो कई अवतार पहले से ही ऐसे गुण होते हैं। वासुदेव होना यानी नर में से नारायण हुए कहलाते हैं। नर से नारायण यानी किस अवस्था से, जैसे कि वह पड़वा होता है तब से मालूम नहीं होता कि अब पूनम होनेवाली है। ऐसे उसके कईं अवतार पहले से मालूम हो जाता है कि ये वासुदेव होनेवाले हैं।
नहीं बोल सकते उलटा कृष्ण या रावण का
ये जो तिरसठ शलाका पुरुष कहलाते हैं न, उन पर भगवान ने मुहर लगाई कि ये सारे भगवान होने लायक हैं। इसलिए हम अकेले अरिहंत को भजें और इन वासुदेव को नहीं भजें तो वासुदेव भविष्य में अरिहंत होनेवाले हैं। यदि वासुदेव का उलटा बोलेंगे तो हमारा क्या
होगा? लोग कहते हैं न, 'कृष्ण को ऐसा हुआ है, वैसा हुआ है...' अरे, ऐसा नहीं बोलते। उनके बारे में कुछ मत बोलना। उनकी बात अलग है और तू जो सुनकर आया वह बात अलग है। क्यों जिम्मेवारी मोल लेता है? जो कृष्ण भगवान अगली चौबीसी में तीर्थंकर होनेवाले हैं, जो रावण अगली चौबीसी में तीर्थंकर होनेवाले हैं, उनकी जिम्मेवारी क्यों मोल लेते हो?
तिरसठ शलाका पुरुष शलाका पुरुष यानी मोक्ष में जाने योग्य श्रेष्ठ पुरुष। मोक्ष में तो दूसरे भी जायेंगे मगर ये श्रेष्ठ पुरुष कहलाते हैं। इसलिए वे ख्याति के साथ हैं। संपूर्ण ख्यातनाम होकर मोक्ष में जाते हैं। हाँ, उनमें चौबीस तीर्थकर होते हैं, बारह चक्रवर्ती होते हैं, नौ वासुदेव होते हैं, नौ प्रतिवासुदेव होते हैं और नौ बलदेव होते हैं। बलदेव वासुदेव के बड़े भाई होते हैं। वे हमेशा साथ में ही होते हैं। यह नेचुरल एडजस्टमेन्ट (स्वाभाविक समायोज़न) होता है। उसमें फर्क नहीं होता। नेचुरल में कोई परिवर्तन नहीं होता। जैसे कि पानी के लिए 26 और 0 ही चाहिए, इसके समान यह बात है।
यह सायन्टिफिक वस्तु है। वर्ना यह तिरसठ मेरा शब्द नहीं है, तिरसठ के बदले चौसठ भी रखता। पर यह कुदरत की रचना कितनी सुंदर और व्यवस्थित है!
बोलते समय उपयोग... हम ॐ नमो भगवते वासुदेवाय बोलें, तब कृष्ण भगवान नज़र आते हैं। इस तरह हम शब्दोच्चार करते हैं। अब कृष्ण भगवान, जो भले ही हमारे दर्शन में आये हुए हों, जो भी चित्र उभरा हो, फिर वे मुरलीवाले हों कि अन्य रूप में हों पर हमारे यह उच्चारण के साथ वे तुरंत दिखाई दें, बोलते ही दिखाई दें। बोलें और दिखाई नहीं दें, उसका अर्थ ही क्या?