Book Title: Trimantra
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ त्रिमंत्र त्रिमंत्र हमने अरिहंत देखें नहीं हों, महावीर भगवान के समय में हमने उन्हें देखा नहीं हों, भगवान महावीर उस ओर (बिहार में) हों और हम इस ओर (गुजरात में) हों, मगर वे अरिहंत ही कहलायेंगे। हमारे नहीं देखने से उनका कुछ बिगड़ नहीं जाता। अर्थात् अरिहंत को अरिहंत मानेंगे तो ज्यादा फल प्राप्त होगा वर्ना वह तो विफल हो जाता है, मेहनत पानी में जाती है। नवकार मंत्र फलदायी नहीं होता, इसकी वज़ह ही यह है। ऐसे देखा जाये तो वे पहले बिहार में थे, उसमें गुजरातवालों को क्या लेना-देना? उस वक्त गाड़ियाँ नहीं थीं, कुछ भी नहीं था, तब क्या लेना-देना? पर नहीं, यहाँ बैठे-बैठे उनका नाम भजते रहें। चाहें वे कितने भी दूर हों मगर किसी जगह पर हाल में हैं कि नहीं? तब कहें, 'हाँ, हैं।' तो वे वर्तमान तीर्थंकर कहलायेंगे। तीर्थंकर कौन कहलाये ? तीर्थंकर भगवान कैवल्यज्ञान सहित होंगे। कैवल्यज्ञान तो दूसरों को भी होता है, केवलियों को भी होता है। पर तीर्थंकर के लिए तीर्थंकर (गोत्र) कर्म का उदय चाहिए। जहाँ उनके पैर पड़ें वह स्थान तीर्थ हो जाता है। जिस काल में तीर्थंकर भगवान होते हैं न, तब सारी दुनिया में उनके जैसी न तो किसी की पुण्याई होती है, न तो किसी के ऐसे परमाणु होते हैं। उनके शरीर के परमाणु, उनकी वाणी के परमाणु, अहह ! स्याद्वाद वाणी ! सुनते ही सभी के हृदय तृप्त हो जायें, ऐसे वे तीर्थंकर महाराज! अरिहंत तो बहुत बड़ा रूप कहलायें। सारे ब्रह्मांड में उस घड़ी ऐसे परमाणु किसी के नहीं होते। सारे उच्चत्तम परमाणु अकेले उनके शरीर में सम्मिलित हुए होते हैं। तब वह शरीर कैसा? वह वाणी कैसी? वह रूप कैसा? उन सब बातों का क्या कहना ! उनकी तो बात ही अलग न! अर्थात् उनकी तुलना तो करना ही नहीं, किसी के साथ! तीर्थंकर की तुलना किसी के साथ नहीं की जा सकती, वे ऐसी गज़ब की मूर्ति कहलाते हैं। चौबीस तीर्थंकर हो गये, मगर वे सारे गज़ब की मूर्ति ! बंधन रहा, अघाती कर्म का प्रश्नकर्ता : अरिहंत भगवान अर्थात् मोक्ष से पहले की स्थिति? दादाश्री : हाँ, अरिहंत भगवान अर्थात् मोक्ष से पहले की स्थिति। ज्ञान में सिद्ध भगवान के समान ही स्थिति है, पर बंधन के रूप में इतना शेष रहा है। जैसे दो मनुष्यों को साठ साल की सजा सुनाई थी तब एक मनुष्य को जनवरी की पहली तारीख पर सुनाई थी और दूसरे मनुष्य को जनवरी की तीसरी तारीख को सुनाई थी। पहले के साठ साल पूरे हो गये और वह रिहा हो गया। दूसरा दो दिन के बाद रिहा होने जा रहा है। पर वह मुक्त ही कहलाता है न? ऐसी उनकी स्थिति है। नमो सिद्धाणं... फिर दूसरे कौन हैं? प्रश्नकर्ता : 'नमो सिद्धाणं'। दादाश्री : अब जो यहाँ से सिद्ध हो गये हैं, जिनकी यहाँ पर देह भी छूट गई है और फिर देह प्राप्त होनेवाली नहीं है और सिद्धगति में निरंतर सिद्ध भगवान की स्थिति में स्थित हैं, ऐसे सिद्ध भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ। अब यहाँ से रामचन्द्रजी, ऋषभदेव भगवान, महावीर भगवान आदि सभी जो षड्रिपु को जीतकर सिद्धगति में गये अर्थात् वहाँ निरंतर सिद्धदशा में रहते हैं, उनको नमस्कार करता हूँ। इसमें क्या हर्ज है, बोलिए! इसमें कुछ हर्ज जैसा है? अब वे पहलेवाले ऊँचे कि दूसरे जो अभी बोले वे ऊँचे? ये तो देह त्यागकर सिद्ध हो गये हैं, पूर्णतया मुक्त हुए हैं। अब इन दोनों में

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29