Book Title: Tithidin ane Parvaradhan tatha Arhattithibhaskar
Author(s): Jain Pravachan Pracharak Trust
Publisher: Jain Pravachan Pracharak Trust

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Page 537
________________ ૧૩૪ अनुसार वृद्धा तिथि को दो दिन सूर्योदयकालिकी समझता है । उक्त प्रश्न का जो यह उत्तर दिया गया है कि पूर्णिमा और अमावास्या की वृद्धि में औदयिकी ही तिथि आराध्य रूप से ग्रहण की जानी चाहिये- पूर्णिमाऽमावास्ययोर्बुद्धौ औदयिक्येव तिथिराराध्यत्वेन ग्राह्या- इसमें आये औदयिकी शब्द का भी यही अर्थ करना होगा कि जिस दिन पूर्णिमा वा अमावास्या उदयकालिक ही हो अस्तकालिक न हो उसी दिन को अर्थात् उत्तर दिन की ही तिथि, क्योंकि " सूर्योदयकालिकी तिथि ग्रहण की जानी चाहिये " इस कथन से प्रश्नकर्ता का मनस्तोष न होगा कारण कि वह टिप्पण के अनुसार वृद्धा तिथि को दो दिन सूर्योदयकालिकी समझता है । इस प्रकार इस प्रश्नोत्तर वाक्यसे भी " औदयिक्येकादश्याम् " इस वाक्य के औदयिकी शब्द के उक्त अर्थ का ही समर्थन होता है । [ જૈન દૃષ્ટિએ તિથિદિન અને પર્વોરાધન–સંગ્રહવિભાગ अथवा उत्- ऊर्ध्वम्, अयते - गच्छति, इति उदयः - बाद में प्राप्त होने वाला दिन- उत्तर दिन, तत्र भवा--उस में होनेवाली इस व्युत्पत्ति से " औदयिक्येकादश्याम् " इस वाक्य में आये हुये औदयिकी शब्द का अर्थ करना चाहिये - उत्तर दिन की तिथि । औदयिकी शब्द का यह अर्थ स्वीकार करने पर ही " पूर्वस्यामपरस्यां वा " - - पूर्व दिन की एकादशी में वा उत्तर दिन की एकादशी में - इस प्रश्न के अनुरूप उत्तर का, अर्थात् उत्तर दिन की एकादशी में - इस उत्तर का लाभ " औदयिक्येकादश्याम् " इस वाक्य से होगा । कहने का अभिप्राय यह है कि " एकादशीवृद्धौ श्रीहीरविजयसूरीणां निर्वाणम हिमपौषधोपवासादि विधेयम् " इस प्रश्न वाक्य से प्रश्नकर्ता की जो यह जिज्ञासा सूचित होती है कि एकादशी की वृद्धि में श्रीहीरविजयसूरि के निर्वाण सम्बन्धी पौषध उपवास आदि कार्य पूर्व दिन की एकादशी में करने चाहिये वा उत्तर दिन की एकादशी में ? उसकी निवृत्ति जिज्ञासित दिनों की एकादशियों में किसी एक दिन की एकादशी के निश्चयात्मक उत्तर से ही होगी न कि औदयिकी एकादशी में - इस प्रकार के अस्पष्ट उत्तर से । कारण कि जिज्ञासाऽनुकूल उत्तरसे ही जिज्ञासा की निवृत्ति होने का नियम होने से - औदयिकी एकादशी में करना चाहिये - इस उत्तर से औदयिकी एकादशी में करना चाहिए वा अनौदयिकी एकादशी में - इसी जिज्ञासा की निवृत्ति हो सकती है न कि पूर्व दिन की एकादशी में करना चाहिये वा उत्तर दिन की एकादशी में करना चाहिये इस जिज्ञासा की निवृत्ति हो सकती है । इसलिये इस जिज्ञासा के अनुरोध से "औदयिक्येकादश्याम् इस उत्तरवाक्य का यही अर्थ करना उचित है कि उत्तर दिन की एकादशी में करना चाहिये । , यहाँ यह शंका उठ सकती है कि " औदयिक्येकादश्याम् ” इस उत्तरवाक्य का -3 - औदयिकी एकादशी में करना चाहिये - यह स्पष्ट अर्थ स्वीकार कर उसके अनुरूप जिज्ञासा के प्रकटन में प्रश्नवाक्य के ही तात्पर्य की कल्पना क्यों न की जाय, क्यों प्रश्नवाक्य को एक विशेष प्रकार की जिज्ञासा का बोधक मानकर उसके अनुरूप अर्थ की सिद्धि के लिये उत्तरवाक्य की खींचातानी की जाय । परन्तु यह शंका ठीक नहीं है, कारण कि औदयिकी एकादशी में करना चाहियेइस उत्तर के अनुरूप तो यही जिज्ञासा होगी कि औदयिकी में करना चाहिये वा अनौदयिकी में, पर यह जिज्ञासा हो ही नहीं सकती, क्योंकि जैन शास्त्रों में आराधना के लिये औदयिकी तिथि के ही ग्रहण का आदेश है। दूसरी बात यह कि उक्त प्रश्न वृद्धा एकादशी के सम्बन्ध में है और वृद्धा एकादशी को प्रश्नकर्ता टिप्पणानुसार दोनों दिन औदयिकी ही समझता है। अतः वृद्धा एकादशी के विषय में अनौदयिकीत्व -- पक्ष उपस्थित ही नहीं हो सकता । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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