Book Title: Tin Gunvrato evam Char Shiksha Vrato ka Mahattva
Author(s): Manjula Bamb
Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf

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Page 2
________________ | 15,17 नवम्बर 2006 जिनवाणी ___ श्रावक शब्द 'श्रु' धातु से बना है, जिसका अर्थ है श्रवण करना - सुनना । अर्थात् जो शास्त्रों को श्रवण करने वाले हैं, उन्हें श्रावक कहते हैं। व्यवहार में श्रावक शब्द का अर्थ इस प्रकार है - श्रद्धालुतां याति शृणोति शासनं, दानं वपेदाशु वृणोति दर्शनम् । कृन्तत्यपुण्यानि करोति संयमं, तं श्रावकं प्राहुरमी विचक्षणाः ।। अर्थात् जो श्रद्धावान हो, शास्त्र का श्रवण करे, दान का वपन करे, सम्यग्दर्शन का वरण करे, पाप को काटे या क्रियावान हो, वह श्रावक है। आशय यह है कि जो शुद्ध श्रद्धा से युक्त हो और विवेकपूर्वक क्रिया करे, वह श्रावक जिस प्रकार तालाब के नाले का निरोध कर देने से पानी का आगमन रुक जाता है, उसी प्रकार हिंसादि का निरोध कर देने से पाप का निरोध हो जाता है इसी को व्रत कहते हैं। व्रतों का समाचरण दो प्रकार से किया जाता है - जो हिंसा आदि का सर्वथा त्याग करके साधु बनते हैं वे सर्वव्रती (महाव्रती) कहलाते हैं और जो आवश्यकतानुसार छूट रखकर आंशिक रूप से हिंसादि पापों का त्याग करते हैं, वे अणुव्रती श्रावक कहलाते हैं। उन्हें देशव्रती भी कहते हैं। देशव्रती के चारित्र में पाँच अणुव्रतों, तीन गुणव्रतों और चार शिक्षाव्रतों का इस प्रकार कुल बारह व्रतों का समावेश होता है। - श्रावकों के व्रत बारह प्रकार के होते हैं। पाँच अणुव्रत (१) स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत (२) स्थूल मृषावाद विरमण व्रत (३) स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत (४) स्वदार संतोष व्रत (५) स्थूल परिग्रह परिमाण व्रत तीन गुणव्रत (१) दिशा परिमाण व्रत (२) उपभोग-परिभोग परिमाण व्रत (३) अनर्थदण्ड विरमण व्रत चार शिक्षाव्रत (१) सामायिक व्रत (२) देशावगासिक व्रत (३) पौषधोपवास व्रत (४) अतिथिसंविभाग व्रत पहले पाँच अणुव्रत हैं। अणुव्रत का अर्थ है छोटे व्रत । श्रमण हिंसादि का पूर्ण परित्याग करता है इसलिए उनके व्रत महाव्रत कहलाते हैं। किन्तु श्रावक उनका पालन मर्यादित रूप से करता है, अतः श्रावक के व्रत अणुव्रत कहे जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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