Book Title: Tin Gunvrato evam Char Shiksha Vrato ka Mahattva
Author(s): Manjula Bamb
Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf

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Page 7
________________ | 158 | जिनवाणी ||15,17 नवम्बर 2006 अमुक-अमुक उद्योग धंधों से ही अपने उपभोग और परिभोग की वस्तुओं का उपार्जन करूंगा, दूसरे कार्यों से नहीं यह कर्म से उपभोग-परिभोग व्रत कहलाता है। उपभोग-परिभोग के लिए वस्तुओं की प्राप्ति करनी पड़ती है और उनके लिए पाप कर्म भी करना पड़ता है। जिस व्यवसाय में महारंभ होता है, ऐसे कार्य श्रावक के लिए निषिद्ध हैं, उन्हें कर्मादान की संज्ञा दी गई है, उनकी संख्या पन्द्रह है। ये जानने योग्य है, किन्तु आचरण के योग्य नहीं हैं, वे इस प्रकार हैं - १. अंगार कर्म - अग्नि सम्बन्धी व्यापार जैसे कोयले, ईंट पकाने आदि का धंधा करना। इस व्यापार में छः काय के जीवों की हिंसा अधिक होती है। २. वन कर्म - वनस्पति संबंधी व्यापार जैसे वृक्ष काटने, घास काटने आदि का धंधा करना। इस व्यापार कार्य में भी हिंसा होती है। ३. शकट कर्म - वाहन सम्बन्धी व्यापार यथा गाडी, मोटर, तांगा, रिक्शा आदि बनाना। इसमें पशुओं का बंध, वध और जीव हिंसादि पाप अधिक होता है। ४. भाट कर्म - वाहन आदि किराये पर देकर आजीविका चलाना । ५. स्फोट कर्म - भूमि फोड़ने का व्यापार जैसे खाने खुदवाना, नहरें बनवाना मकान बनाने का व्यवसाय करना। ६. दन्तवाणिज्य -हाथीदाँत, हड्डी आदि खरीदने का व्यापार करना। . ७. लाक्षा वाणिज्य - लाख, चपड़ी आदि खरीदने और बेचने का व्यापार करना । लाख में जीव बहुत अधिक होते ८. रसवाणिज्य - मदिरा, शहद आदि का व्यापार करना। ९. केशवाणिज्य - बालों व बाल वाले प्राणियों का व्यापार करना। केश के लिए ही चँवरी गाय आदि प्राणियों की हिंसा होती है। ऐसे व्यापार त्यागने योग्य है। १०. विष वाणिज्य - जहरीले पदार्थ एवं हिंसक अस्त्र-शस्त्रों का व्यापार। विषयुक्त पदार्थों के खाने से या सूंघने से प्राणियों की मृत्यु हो जाती है। यह कर्म भी श्रावक के लिए अनाचर्य है। ११. यंत्रपीडन कर्म - मशीन चलाने का व्यापार । ईख, तिल, कपास और धान्यादि को यंत्रों द्वारा पीड़न करने से अनेक प्राणियों की हिंसा होती है। इसलिए यह कर्म निंदित है। १२. निर्लाञ्छन कर्म - बैल, भैंसा, ऊँट, बकरादि प्राणियों को नपुंसक बनाने हेतु अवयवों के छेदने, काटने आदि का व्यवसाय। १३. दावाग्निदापन कर्म - वन, जंगल, खेत आदि में आग लगाने का कार्य। अथवा पृथ्वी को साफ करने के लिए दावाग्नि लगा देना। इस कार्य से अनेक प्राणियों की हिंसा होती है। इसलिए यह कार्य निन्दित है। १४. सरद्रहतडाग शोषणता कर्म - सरोवर, झील, तालाब आदि को सुखाने का कार्य करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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