Book Title: Tin Gunvrato evam Char Shiksha Vrato ka Mahattva Author(s): Manjula Bamb Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf View full book textPage 6
________________ 15, 17 नवम्बर 2006: जिनवाणी 157 आदि अनेक अन्य चीजें बनती हैं, वह सब अलग-अलग द्रव्य गिने जाते हैं। इसी प्रकार द्रव्य समझना चाहिए। उक्त छब्बीस प्रकार की वस्तुओं में कोई उपभोग की है और कोई परिभोग की हैं। श्रावक का कर्तव्य है कि जो-जो वस्तु अधिक पापजनक हो उसका परित्याग करे और जिन-जिन को काम में लाये बिना काम न चल सकता हो उनकी संख्या एवं वजन आदि की मर्यादा करे और अतिरिक्त का त्याग कर दे। मर्यादा की हुई वस्तुओं में से भी अवसरोचित कम करता जाय और उनमें लुब्धता धारण न करे। अपनी आवश्यकताओं को कम कम बनाना और सन्तोषवृत्ति को अधिक बढ़ाना इस व्रत का प्रधान प्रयोजन है। ज्यों-ज्यों यह प्रयोजन पूरा होता जाता है त्यों-त्यों जीवन हल्का और अनुकूल बनता चला जाता है, क्योंकि जीवन केवल भोग के लिए ही नहीं होता है। उससे परमार्थ की साधना भी करनी चाहिए। छब्बीस वस्तुओं में से पहले से ग्यारह तक के बोल शरीर को स्वच्छ, स्वस्थ एवं सुशोभित करने वाले पदार्थों से सम्बन्धित हैं। बीच के दस खाने-पीने में आने वाले पदार्थों से संबंधित हैं और अन्त के शेष बोल शरीर आदि की रक्षा करने वाले पदार्थों से सम्बन्धित हैं । उपभोग करने योग्य भोजन, पान आदि पदार्थों का तथा परिभोग करने योग्य वस्त्र, आभूषण आदि पदार्थो का परिमाण निश्चित करना अर्थात् मैं अमुक वस्तु को ही अपने उपभोग परिभोग में रखूँगा, इनसे भिन्न पदार्थो को नहीं रखूँगा, ऐसी संख्या नियत करना भोजन सम्बन्धी उपभोग-परिभोग व्रत है। इसके पाँच अतिचार निम्न प्रकार हैं१. सचित्ताहार - सचित्त पदार्थों के भक्षण के त्यागी श्रावक के द्वारा सचित्त कन्द, मूल, फल, फूल तथा पृथ्वीकायिक नमक आदि का भक्षण किया जाना सचित्ताहार नामक अतिचार है। व्रतधारी श्रावक यदि भूल से सचित्त वस्तु का भक्षण कर ले अथवा सचित्त वस्तु में यदि उसका अतिक्रम, व्यतिक्रम और अतिचार हो जाय तो वह अतिचार है अन्यथा जानबूझकर सचित्त वस्तु का भक्षण करना अनाचार होता है। २. सचित्त प्रतिबद्धाहार - जिस सचित्त वस्तु का त्याग किया है उसके साथ अचित्त वस्तु संलग्न हो वह सचित्त पडिबद्ध कहलाती है। उसका आहार करना जैसे - वृक्ष में लगा हुआ गोंद, पिंडखजूर, गुठली सहित आम आदि खाना । ३. अपक्वाहार - सचित वस्तु का त्याग होने पर बिना अग्नि के पके कच्चे शाक, बिना पके फल आदि का सेवन करना । ४. दुष्पक्वाहार- जो वस्तु अर्धपक्व हो उसका आहार करना । ५. तुच्छौषधि भक्षण - जो वस्तु कम खाई जाय और अधिक मात्रा में फेंकी जाय ऐसी वस्तु का सेवन करना जैसे सीताफल, गन्ना आदि। इनके खाने से विराधना तो अधिक होती है और तृप्ति बिल्कुल थोड़ी होती है, इसलिए यह तुच्छौषधि अतिचार है । उपभोग तथा परिभोग के योग्य पदार्थो की प्राप्ति के लिए उद्योग धंधों का परिमाण करना, जैसे कि मैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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