Book Title: Tin Gunvrato evam Char Shiksha Vrato ka Mahattva
Author(s): Manjula Bamb
Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf

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Page 15
________________ 166 || जिनवाणी 115,17 नवम्बर 2006|| इस प्रकार साधु-साध्वी को प्रसन्न मन से निर्दोष आहारादि का दान करने से इस व्रत का पालन होता है। ___ इस व्रत को दूषित करने वाले पाँच अतिचार इस प्रकार हैं - 1. सचित्त निक्षेप - साधु को नहीं देने की बुद्धि से निर्दोष और अचित्त वस्तु को सचित्त वस्तु पर रख देना, जिससे वे ले नहीं सकें। 2. सचित्तपिधान - कुबुद्धि पूर्वक अचित वस्तु को सचित्त से ढक देना। 3. कालातिक्रम - गोचरी के समय को चुका देना और बाद में शिष्टाचार साधने के लिए तैयार होना। 4. परव्यपदेश - नहीं देने की बुद्धि से अपने आहारादि को दूसरे का बतलाना। ५.मत्सरिता - दूसरे दाताओं से ईर्ष्या करना। इन पाँचों अतिचारों को टालकर शुद्ध भावना और बहुमान पूर्वक दान देना चाहिए। ऐसा दान महान् फल वाला होता है। जहाँ द्रव्य शुद्ध और पात्र शुद्ध हो और उत्कृष्ट रस आ जाये तो तीर्थकर गोत्र का बंध हो जाता है। (ज्ञाताधर्मकथांग 8) भगवती सूत्र में दान का फल बतलाते हुए व्याख्या निम्न प्रकार से की गई हैप्रश्न - भगवन्! तथारूप श्रमण माहन को प्रासुक एषणीय अशन, पान, खादिम, स्वादिम बहराते हुए श्रमणोपासक को क्या फल मिलता है? उत्तर - गौतम! उस श्रमणोपासक को एकान्त निर्जरा होती है अर्थात् वह एकान्त रूप से संचित कर्मो की निर्जरा करता है। वह पाप कर्म बिल्कुल नहीं बाँधता। ___दाता जब निर्दोष आहार-पानी परम श्रद्धा से बहराता है, उस समय उसके परिणाम विशुद्ध होते हैं। भावों की विशुद्धि जब तक चालू रहती है, तब तक कर्मों की सतत निर्जरा होती ही रहती है। जब समयान्तर में विशुद्धता नहीं होती, कुछ कम हो जाती है, तब पुण्यानुबंधी पुण्य का बन्ध चालू होता है। निर्जरा से मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुण्यानुबंधी पुण्य से वह भौतिक सुख मिलता है, जो धर्म आराधना में बाधक न हो। परन्तु पाप कर्म तो बिल्कुल नहीं बँधता। इस प्रकार चौथे शिक्षा व्रत (बारहवें व्रत) के अतिचारों से सदैव बचना चाहिए। प्रतिक्रमण साधक-जीवन की एक अद्भुत कला है तथा जैन साधना का प्राणतत्त्व है। ऐसी कोई भी क्रिया नहीं जिसमें प्रमादवश दोष न लग सके, अतः दोषों से निवृत्ति हेतु प्रतिक्रमण करना चाहिए। प्रतिक्रमण में साधक अपने जीवन की प्रत्येक प्रवृत्ति का अवलोकन, निरीक्षण करते हुए उन दोषों से निवृत्त होकर हल्का बनता है। -हेम-मजुल, 3 रामसिंह रोड होटल मेरू पैलेस के पास, जयपुर-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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