Book Title: Tilakmanjari
Author(s): Dhanpal Mahakavi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 405
________________ 62 0 १५४ 72 १ 75 16 Appendix-A Serial Beginning of the verse Page Verse No. No. No. 'प्राज्यप्रभावः प्रभवो 63 प्रातः प्रातरवेश्य होमहुतभुग १९२ प्राप्तप्राक्छैलकुटा इव कुचतटयोः प्रासादेषु त्रुटितशिखरश्वभ्रलब्ध भद्र कीर्तेभ्रमत्याशाः भवत्याविर्भावः शिखरपरिपाट्या भित्ता संपुटमोष्ठयोर्न हसितं मन्ये दक्षिणमारुतेन विदितं माघेन विधिनतोत्साहाः म्लायन्ति सकला: कालिदासेना यथा स्थूलं मूलेऽवतरति दृशां 73 यस्य दोष्णि स्फुरदधेतौ 74 यस्या ललाटे सदृशद्युतित्वात् यस्यां गुणोवजुषि दूषणमेकमेव येषां सेन्यभराहि तोरगतिश्रान्ति रक्षन्तु स्खलितोपसर्गगलित लतावनपरिक्षिप्ते 89 वन्द्यास्ते कवयः काव्यपरमार्थविशारदाः वन्येभे शमपि गाहूयमान कूले 81 वर्णयुक्ति दधानापि वार्योऽनार्यः स निर्दोष 83 वासिष्ठैः स्म कृतस्मयो वरशतैः विषदिव विरता विभावरी शास्त्रेष्वधीती कुशलः कलासु शुष्कशिवरिणि कल्पशाखीव 4शेषेसेवाविशेषं ये श्रुव त्यदभुतमस्मदाजिललित 5 श्रुत्वा यं सहसागत निजवपु० 2. Quoted by Bhoja in his SKBR(J). I. 163. p. 116 and II. 158. p. 224 with waregia: fit agert sit azai fal: as cand d, also quoted by Hema candra in HK, V. 485 verbatim on p. 328. 3. Quoted by Bhojl in SKB(RJ) V. 418, P. 695. 4. Quoted by Hemacandra in the CH, V. 17. 2. as an illustratiou of Ma tra metre. 5. Quoted by Bhoja in the SKB RJ). I. 83. P. 58. 82 mms १ 88 v " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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