Book Title: Tilakmanjari
Author(s): Dhanpal Mahakavi
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text
________________
281. वारंवारमापादयता सितपटस्य पाटवम् 85.12. 282. विचारपदवी प्रापितस्त्वया...निजप्रसाद: 247.14.. 283. विच्छायतामगच्छ- 225.17. 284. विजनमादिश्यताम् 248.19. 285. विज्ञापनीयमिदमस्मद्वचो नभश्चरेन्द्रस्य 99.10. 286. विधाय मामपगताहारवाञ्छम् 150.23. 287. विधेयतां गता जीवित देवी 209.1. 288. विधेहि प्रस्थानमधुनैव 192.21. 289. विषविकारोऽयं...समन्तत; वपुषि विलसित: 222.10 290. विष्टरे न्यवेयत् 251.17. 291. विससर्ज वाणिम् 239.23. 92. विहितापरवरनामोद्घटनाम् 173.14. 293. वेगमतिमहान्तमातनोत् 141.21. 294. व्यधीयन्त वैणिकैः...निश्चला: कलाः वल्लकीषु 158.4-ff. 295. शत्रोरपहृता भवति 190.12 ff. 296. श्रवसि समाचार यत् 191.5. 297. स एष कल्याणानुबन्धी कल्याणसंपाल्लाभः 249.15ff. 298. सत्वरमाचकर्ष नावम् 85.20. 299. सत्वरोऽहमत्रकर्मणि निजेनैव प्रयोजनेन 97.10 ff. 300. सप्रयत्नेन भूत्वा लिखितम् 95.14. 301. समावर्जयतु पुण्यस्कन्धमतिमहान्तम् 189.25. 302. सर्वथा कुरु स्थिरमवस्थानाय चेतः 59.26. 303. सर्वथा यदस्ति तदस्तु 35.10. 304. सर्वथा यथासुखमाऽऽस्स्व 196.23ff. 305. सर्वमिदमन्यन्न विज्ञायते किमिति 197.9. 306. सा हि दुःखमास्ते 248.11ff. 307. सादरं दृष्ट व्या 98.27. 308. सिंहानादानुच्चकैममुचुः 134.15. 309. सुखमयी कामापि दशां प्रापय 45.18. 310. संक्षिप्तैरैव वगैराकर्णयतु कल्याणराशिः 97.12ff. 311. सेगरेषु प्रवेशः संवृतः 52.26. 312. सनिधावभवत् 199.27. 313. संवृणु त्वराम 247.13. 314. स्कन्धावाररममुञ्चत् 48.19; 106.8ff. 315. स्थापितास्तावद्वयं त्वदीयवचसि 188.2.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474